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उपयोगी है। इस आसन को वे पूरे गर्भकाल तक भी कर सकती हैं। इससे स्थिरता बढ़ती है। स्नायु दुर्बलता मिटती है ।
बैठकर किए जाने वाले आसन
1. सुखासन :
जिस आसन में सुखपूर्वक बैठा जाए, उसे सुखासन कहा गया है। सुखासन किसी विशेष आसन का प्रकार नहीं है। जो आसन लम्बे समय तक सुखपूर्वक किया जा सके, वही सुखासन है।
विधि आसन पर सुखपूर्वक बैठे ।
बाँए पैर को दाहिनी पिंडली के नीचे और दाहिने पैर का पंजा बाई पिंडली के नीचे लगाकर बैठना सुखासन कहलाता है। मेरुदण्ड सीधा रखें। श्वास प्रश्वास सहज और दीर्घ रहेगा ।
समय
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एक मिनट से धीरे-धीरे सुविधानुसार बढ़ाएँ ।
लाभ
सुषुम्ना में प्राण का संचार होने से व्यक्ति ऊर्ध्वरेता बनता है।
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कामशक्ति–विजय, चित्तवृत्ति निरोध, वीर्य-शुद्धि, शक्ति - जागरण,
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