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मन की विकृति शरीर पर और शारीरिक विकृति मन को प्रभावित करती है फिर भी शारीरिक स्वास्थ्य कि अपेक्षा हमें मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी होगी, क्योंकि शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए 'मानसिक रूप से स्वस्थ रहना भी बहुत जरूरी है। मानसिक स्वस्थता तभी होगी, जब मन तनावमुक्त होगा। तनाव सबसे भयानक रोग है। तनाव लू की तरह है, जैसे तेज गर्म हवाएं हमारे शरीर के जल को सोख लेती हैं, तनाव भी हमारी मानसिक शान्ति का हरण कर लेते हैं। आज संसार में जितनी भी बीमारियाँ हैं, उनमें अधिकांश का कारण मनुष्य के मन मे पलने वाली चिन्ता, आवेग एवं तनाव ही है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए मन का स्वस्थ होना जरूरी है और मन को स्वस्थ रखने के लिए उसका प्रसन्न और तनावमुक्त होना आवश्यक है। "मन को स्वस्थ किये बगैर जब भी तन का इलाज होगा- वह निष्प्रभावी ही होगा।"5शरीर और मन दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है।
यूं तो अंग्रेजी में कहा गया है कि Sound mind in a sound body अर्थात् स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर में ही होता है। इसका तात्पर्य यही है कि यदि आपका शरीर रोगी होगा तो मन भी बैचेन रहेगा और मन बैचेन (तनावग्रस्त) होगा तो शरीर रोगी होगा। आज अनेक बिमारियाँ जैसे- रक्तशर्करा, उच्चरक्तचाप, आदि तनावों से ही उत्पन्न होती है। शरीर की अस्वस्थता का प्रभाव मन पर पड़ता है किन्तु साथ यह भी सत्य है कि मन के तनावपूर्ण होने पर उसका प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है। मन स्वस्थ तो तन स्वस्थ। मन और तन की चिकित्सा एक दूसरे से निरपेक्ष होकर सम्भव नहीं है। हमारे मन की यह विशेषता है कि वह रोग पैदा भी कर सकता है और उन्हें दूर भी कर सकता है। अनेक स्थितियों में शारीरिक स्वस्थता मन की स्थिति पर ही निर्भर करती है। तनावरहित मन ही व्यक्ति को निरोगी बनाता है। तनावों का सीधा असर पहले हमारे शरीर पर पड़ता है। तनाव के कारण मन की शान्ति समाप्त हो जाती है, फलतः आँखों को
5. चिंता, क्रोध और तनावमुक्ति के सरल उपाय- श्री ललितप्रभ सागर पृ.11
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