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में एक बार कुछ समय तक स्थिर बैठने के बाद मन एकाग्र और शांत व नियंत्रित होता है। जैनागमों में भी अनेक प्रकार के आसनों का नाम निर्देश किया है जैसे वीरासन, कमलासन, वज्रासन, भद्रासन, दण्डासन, उत्काटिकासन, गोदाहासन, सुखासन | 12
दशश्रुतस्कंधसूत्र में भी अनेक प्रकार के आसनों का वर्णन है। जिनकी आगे व्याख्या की गई है। 13
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शरीर के स्थिर होने पर मन भी शांत होता है, क्योंकि मन का शरीर के साथ आंतरिक संबंध होने के कारण शरीर के स्थिर होने पर मन स्थिर हो जाता है । मेरूदण्ड के सीधे दण्डवत् होने से प्राण-शक्ति को ऊपर उठने की प्रेरणा मिलती है। जब प्राण मेरूदण्ड में ऊपर की ओर गति करता है, तब मन केवल स्थिर, शांत या तनावमुक्त ही नहीं होता वरन् चेतना का एक उच्च स्तर प्राप्त कर लेता है। व्यक्ति की संयमन की शक्ति अत्यधिक बढ़ जाती है। आसन शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति, तनावमुक्त जीवन एवं आध्यात्मिक विकास के लिए उपयुक्त भूमिका का निर्माण करते हैं। आसन अस्वस्थ व्यक्ति के लिए तो उपयोगी हैं हीं, वे स्वस्थ व्यक्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। स्वस्थ व्यक्ति आसन से मानसिक प्रसन्नता को पाने के साथ-साथ तनावमुक्त हो जाता है । योगासन एवं व्यायाम शरीर में इधर-उधर जमे हुए मल को, जो शारीरिक तनाव का कारण है उसे दूर करते हैं। इससे हमारा मन बेहतर रीति से कार्य करने लगता है। शरीर की सक्रियता एवं स्वस्थता को बनाए रखकर ही साधना के परिणामों को प्राप्त कर सकते है अर्थात् तनाव से मुक्त हो सकते हैं। देश, काल और समाज की तनावपूर्ण परिस्थितियों से गुजरते व्यक्ति योगासन और व्यायाम से तनावमुक्त जीवन जी सकते हैं। शारीरिक, मानसिक पीड़ाओं से ग्रस्त कुछ लोग योगासन और व्यायाम की ओर प्रवृत्त होते हैं । "यौगिक शारीरिक क्रियाएँ
12. औपा. सृ. ब्राहत सू. 19
13. दशाश्रुतस्कंध – सातवीं दशा
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