________________
और इनसे पैदा हुई बुरी तरंगे पेट और आँतों के रोगों को जन्म देती है। वहीं अच्छे विचार हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करते हैं ।" "
जैसा कि पहले कहा गया है कि मन और तन का इलाज अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। तन की स्वस्थता से मन की स्वस्थता तक और मन की स्वस्थता से तन की स्वस्थता तक जाया जा सकता है। कुछ लोग नये साधकों को मन को वश में करने के लिए विभिन्न प्रकारों की ध्यान प्रक्रियाओं को अपनाने की सलाह देते है, लेकिन जिन लोगों का मन बहुत अधिक चंचल और व्याकुल होता है, उन्हें ध्यान की ये प्रक्रियाएँ बहुत कठिन लगती हैं, क्योंकि वे लोग अपने मन को एक क्षण के लिए भी शांत रखने की सामर्थ्य नहीं रखते है । यही कारण है कि ऐसे व्यक्तियों को चाहिए कि वे उन शारीरिक विधियों को अपनाते हुए मन को नियंत्रित करने का प्रयत्न करें, जिनमें विचारों की प्रक्रियाओं को पूरी तरह बंद करने की आवश्यकता नहीं पड़ती और केवल साधरण एकाग्रता लानी होती है।
172
तनाव प्रबंधन की शारीरिक विधियाँ इस सिद्धांत पर आधारित है कि तन और मन दोनों परस्पर घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं और एक बार आप अपने शरीर को नियंत्रित कर लें, तो मन भी नियंत्रण में आ जाता है और जब मन नियंत्रण में होगा तो व्यक्ति तनावरहित और आनंद से परिपूर्ण होगा। यदि हम शरीर को नियंत्रित कर लें या शरीर के प्रति सजग हो जाएं, तो मन भी नियंत्रण में आ जाता है और जब मन नियंत्रण में आ जावेगा, तो व्यक्ति आनंदयुक्त अर्थात् तनाव रहित होगा ।
मन व तन को तनाव रहित करने कि निम्न शारीरिक विधियाँ प्रस्तुत की गई है:
1. शरीर शुद्धि की क्रियाएँ 2. योगासन और व्यायाम, 3. प्राणायाम, 4. प्रेक्षाध्यान, और 5. कायोत्सर्ग
9. चिंता, क्रोध और तनाव मुक्ति के सरल उपाय, पृ. 12
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org