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अतः ऐसा व्यक्ति भी तनावग्रस्त रहता ही है, चाहे उनकी तीव्रता कुछ कम हो। यह व्यक्ति अपने सम्पर्क में रहे हुए व्यक्ति को भी प्रलोभन बताकर और इच्छाओं को उत्तेजित कर तनावग्रस्त बना देता है। 'जल्दी से रूष्ट हो जाना, दूसरों की निन्दा करना, दोष लगाना, अति शोकाकुल होना, अत्यन्त भयभीत होना - ये गोम्मटसार के अनुसार कायोत लेश्या के लक्षण हैं। 119 4. तेजो लेश्या -
यहाँ मनोदशा शुभ होती है। इस लेश्या से युक्त व्यक्ति पूर्णतः तनाव से मुक्त तो नहीं होता, लेकिन उसके तनावों का स्तर अपेक्षाकृत मन्द होता है। ऐसे व्यक्ति में इच्छाएं और आकांक्षाएं तो होती है, किन्तु उनकी पूर्ति के लिए वह किसी दूसरे व्यक्ति को आघात पहुंचाने में संकोच करता है। वह दूसरों का अहित उसी स्थिति में करता है, जब उसके हित को चोट पहुंचती है। इच्छा पूर्ण न होने पर वह स्वयं को तनावग्रस्त महसूस करने लगता है, लेकिन उसके लिए दूसरों को अधिक कष्ट नहीं देता चाहता है। ऐसे व्यक्ति नम्र वृत्ति वाला, अचपल, माया से रहित, विनयवान, गुणवान, धर्मप्रेमी, दृढ़धर्मी, पापभीरू और हितैषी होते हैं। 120 कार्य-अकार्य का ज्ञान, श्रेय-अश्रेय का विवेक, सबके प्रति समभाव, दया-दान में प्रवृत्ति –ये पीत या तेजो लेश्या वाले व्यक्ति के लक्षण है।121
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ऐसे व्यक्ति गुणवान, दयालु, करूणायुक्त और सामंजस्य रखने वाले होते हैं, किन्तु जब कोई दूसरा व्यक्ति उसका अहित या नुकसान पहुंचाने पर उतारू हो जाए तो वह भी उस व्यक्ति का अहित करने में पीछे नहीं हटता। ऐसी प्रवृत्ति करते समय व्यक्ति स्वयं को तनावग्रस्त अनुभव करता है और उससे पीछे हटने का प्रयत्न भी करने लगता है, क्योंकि वह तनाव का इच्छुक नहीं होता। जैसे कोई अहिंसक व्यक्ति डाकुओं द्वारा अपहरण कर लिया गया हो और उसे
॥ गोम्मटसार, जीवकाण्ड, 512 120 उत्तराध्ययनसूत्र – 34/27-28 121 गोम्मटसार, जीवकाण्ड - 515
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