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कृष्ण लेश्या वाला व्यक्ति तनाव से कभी भी मुक्त नहीं होता। इस अवस्था में व्यक्ति के विचार, उसकी भावनाएँ अत्यन्त निम्न कोटि की और क्रूर होती हैं। 'कृष्ण लेश्या में व्यक्ति का वासनात्मक पक्ष उसके जीवन के सम्पूर्ण कर्मक्षेत्र पर हावी रहता है। 111 व्यक्ति अपनी शारीरिक, मानसिक एवं वाचिक क्रियाओं पर नियंत्रण रखने में सक्षम नहीं होता। वह अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं रख पाता है। इन्द्रियों के विषयों की पूर्ति हेतु, बिना विचाए किए, क्रूर कार्य करने के लिए तत्पर रहता है। अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को तकलीफ देने, उनका अहित करने और हिंसा, असत्य, चोरी, व्याभिचार और संग्रहवृत्ति में लगा रहता है। उसका स्वभाव निर्दयी, क्रोधी और कठोर होता है। जिस व्यक्ति में घृणा और विद्वेष हो, जिसका स्वभाव अत्यधिक क्रूर हो, वह व्यक्ति कभी शांत नहीं रह सकता। उसके बाहरी जीवन में भी अशांति होती है और आंतरिक मन में भी अशांति होती है। वह तनाव से इतना अधिक ग्रस्त रहता है कि अपने ही स्वभाव के कारण अपने सहनशीलता, सांमजस्य, करूणा, दया, आत्मविश्वास आदि गुणों को नष्ट कर देता है। ऐसा व्यक्ति स्वयं भी तनावग्रस्त रहता है और दूसरों को भी तनावग्रस्त करता है। कृष्ण लेश्या वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति असंतुलित होती है। ऐसी स्थिति में वह कभी भी स्वयं को एक क्षण के लिए भी शांति नहीं दे पाता है। उत्तराध्ययनसूत्र में भी कृष्ण लेश्या वाले व्यक्ति के लक्षण बताते हुए कहा गया है कि -"इस लेश्या से युक्त व्यक्ति तीन गुप्तियों से अगुप्त, षट्कायिक जीवों के प्रति असंयमी, हिंसा आदि में परिणत और क्रूर होता है। 112 वह सदैव तनावग्रस्त रहता है। गोम्मटसार जीवकाण्ड में लिखा है -"स्वभाव की प्रचण्डता, वैर की मजबूत गाँठ के कारण वह झगड़ालू वृत्ति का तथा करूणा व दया से शून्य होता है, वह दुष्ट, समझाने से भी नहीं मानने वाला होता है, ये कृष्ण लेश्या के लक्षण हैं। 113
III जैन,बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन–भाग.1, डॉ.सागरमल जैन, पृ.514 ।।2 उत्तराध्ययनसूत्र, -34/21 113 गोम्मटसार, जीवकाण्ड - 509
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