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यह व्यक्ति की प्रवृत्ति पर ही निर्भर है, कि वह तनावयुक्त है या तनावमुक्त। व्यक्ति की प्रवृत्ति ही उसकी लेश्या बनती है। व्यक्ति जब कभी अच्छी प्रवृत्ति करता है, अच्छा चिन्तन, अच्छे भाव, अच्छे कार्य करता है, उस समय उसकी शुभ लेश्या होती है, या यह कहा जाए कि तनावों की अतिअल्पता की स्थिति होती है। व्यक्ति जब कभी बुरी प्रवृत्ति करता है, बुरा चिन्तन, बुरे भाव और बुरे कार्य करता है तो उस समय उसको अशुभ लेश्या उदय में आती है या नई अशुभ लेश्या निर्मित हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति तनावयुक्त हो जाता है।
मन की चंचलता तनाव पैदा करती है और मन की चंचलता से ही लेश्या भी निर्मित होती है। मन में जैसे भाव हैं, वैसी ही हमारी लेश्या होगी। मनोभाव बार-बार बदलते रहते हैं। विचार बार-बार बदलते रहते हैं और शुभाशुभ भावों के उतार-चढ़ाव में व्यक्ति कभी स्वयं को तनावमुक्त और कभी तनावग्रस्त अनुभव करता है। इन्हीं भावों के आधार पर व्यक्ति के तनाव का स्तर लेश्याओं के द्वारा जाना जा सकता है। लेश्या के प्रकार एवं तनाव का स्तर -
जैनागमों में लेश्या दो प्रकार की मानी गई हैं107 - 1. द्रव्य लेश्या और 2. भाव-लेश्या 1. द्रव्य लेश्या - द्रव्य लेश्या को उसके वर्ण, गंध, रस आदि के पौद्गलिक आधार पर छ: भागों में बांटा गया है। द्रव्य लेश्या पौद्गलिक है। "द्रव्य-लेश्या सूक्ष्म भौतिक तत्त्वों से निर्मित वह आंगिक रचना है जो हमारे मनोभावों का सापेक्ष रूप में कारण अथवा कार्य बनती है। 108 जिस प्रकार पित्त द्रव्य की विशेषता से स्वभाव में क्रोधीपन आता है और क्रोध के कारण पित्त का निर्माण बहुल रूप में होता है, उसी प्रकार इन सूक्ष्म भौतिक तत्त्वों से मनोभाव बनते हैं .
107 भगवतीसूत्र – 15 शतक, 5 उ. 108 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन -भाग 1, पृ. 512
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