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सजग व शक्तिशाली होगी उसमें क्रोध की प्रवृत्ति के नियंत्रण की शक्ति भी अधिक होगी और वह तनावग्रस्त भी कम होगी ।
अनन्तानुबंधी क्रोध में व्यक्ति का मनोबल हीन होता है । अप्रत्याख्यानी क्रोधी के मनोबल में केवल इतनी ही शक्ति होती है कि वह क्रोध की बाह्य प्रतिक्रियाएं नहीं करता है है, परन्तु उसका मन तनावों से ग्रस्त रहता है।
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प्रत्याख्यानावरण क्रोध एवं संज्जवलन क्रोध में व्यक्ति का मनोबल अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली होता है, इसलिए वह क्रोध की बाह्य अभिव्यक्ति पर पूर्ण नियन्त्रण कर पाता है । प्रत्याख्यानावरण क्रोध कुछ समय के लिए चेतना का स्पर्श मात्र करता है, उसकी बाह्य अभिव्यक्ति नहीं होती है, जबकि संज्जवलन कषाय में क्रोध मात्र अचेतन या अवचेतन स्तर पर मात्र सत्ता रूप होता है। अनन्तानुबन्धी क्रोध तीव्रतम, प्रतिक्रियायुक्त एवं जीवनपर्यन्त बना रहता है और अप्रत्याख्यानी क्रोध केवल चैत्तसिक स्तर पर होता है। उसमें बाह्याभिव्यक्ति या प्रतिक्रियाएँ रूकती हैं, किन्तु चैत्तसिक प्रतिक्रियाएँ या संकल्प-विकल्प चलते रहते हैं । प्रत्याख्यानी कषाय में बाह्य एवं चैत्तसिक प्रतिक्रिया तो रूकती है, किन्तु चित्त उससे कुछ समय के लिए प्रभावित अवश्य होता है। जितनी अधिक क्रोध की प्रतिक्रियाएं उतना ही अधिक तनाव और जितनी कम क्रोध की प्रतिक्रियाएं उतना ही कम तनाव होगा ।
2. मानकषाय
'मान एक ऐसा मनोविकार है, जो स्वयं को उच्च एवं दूसरों को निम्न समझने से उत्पन्न होता है। 70 सामान्यतः मान दूसरों से हमें मिलने वाले आदर, इज्जत या सम्मान-सत्कार की आकांक्षा को कहते हैं। वस्तुतः यहां मान से तात्त्पर्य उस मनोविकार से है, जिसमें स्वयं को सर्वश्रेष्ठ एवं दूसरों को निम्न
70 कषाय : एक तुलनात्मक अध्ययन, साध्वी हेमप्रभाश्री, पृ. 23
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