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मानकषाय और तनाव का सह-सम्बन्ध
मान नशे के समान है। जिस प्रकार नशे में धुत्त व्यक्ति स्वयं के शारीरिक हिस्सों को नष्ट करता हुआ लड़खड़ा कर चलते हुए धरती पर गिर पड़ता है, उसी प्रकार मद के वशीभूत व्यक्ति भी स्वयं की मानसिक शांति एवं अपने ज्ञान को नष्ट करता हुआ तनावग्रस्त हो जाता है। 'अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। 75. मान के वशीभूत व्यक्ति स्वार्थी हो जाता है। वह अपने फायदे के लिए दुष्कर्म करने से भी पीछे नहीं हटता । उसके मनोपटल पर स्वयं की प्रशंसा कैसे हो और दूसरों को नीचा कैसे दिखाए, यही विचार चलते रहते हैं। जब व्यक्ति दूसरों से मिलने वाले आदर, सम्मान, इज्जत, प्रशंसा से फूला नहीं समाता है, तो उसे स्वयं के कार्य पर गर्व होने लगता है और उसे दूसरों के सभी कार्य व्यर्थ लगने लगते हैं । सूत्रकृतांग में भी यही कहा है कि अन्नं जणं पस्सति बिंबभूयं अर्थात् अभिमानी अपने अहंकार में चूर होकर दूसरों को सदा बिंबभूत अर्थात् परछाई के समान तुच्छ मानता है । " वह स्वयं को सर्वश्रेष्ठ व अन्य सभी को हीन समझने लगता है और इस स्तर पर उसका मन विचलित हो जाता है, अर्थात् तनावयुक्त हो जाता है। निम्न भय उसकी मानसिक शांति को भंग कर देते हैं
1. कहीं कोई मुझसे सर्वश्रेष्ठ न हो जाए ।
2. कहीं कोई मेरे अवगुणों को उजागर न कर दे।
3. मेरी ख्याति समाप्त न हो जाए ।
4. कहीं कोई मेरे मान को ठेस न पहुंचा दे |
उपर्युक्त भयों के कारण वह विचार करने लगता है कि ऐसा क्या किया जाए जिससे अपनी मिथ्या प्रशंसा बनी रहे। वह अपने मान की रक्षा करने व भयमुक्ति हेतु दोहरा व्यवहार करता है । किन्तु वह इस बात से अनजान रहता है
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बालजणो पगब्भई, - 1/10/20
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