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समाज में अनेक प्रकार की कुरीतियाँ भी प्रचलित होती हैं। उन कुरीतियों ' के कारण भी व्यक्ति का जीवन तनावग्रस्त बनता है। जैसे जिस समाज में यह प्रथा प्रचलित होती है कि --- जब तक किसी मृत व्यक्ति का मृत्युभोज नहीं किया जाता, तब तक उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है, फलतः उसके परिजन अर्थाभाव होने पर भी इस प्रथा को निभाते हैं। इस प्रकार मृत्युभोज की गलत परम्परा को जन्म तो मिलता ही है, किन्तु इसके परिणामस्वरूप जो विपण्ण परिस्थिति के लोग हैं, वे भोज सामग्री और उसके लिए अर्थ व्यवस्था न कर पाने के कारण तनावग्रस्त बने रहते हैं। मृत्युभोज में कभी-कभी इतना व्यय होता है कि सम्पन्न व्यक्ति भी विपण्ण परिस्थिति में चला जाता है और विपण्ण व्यक्ति भी समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए उस हेतु व्यवस्था करने में और भी विपण्ण हो जाता है।
जिस समाज में बाल-विवाह होते हैं, वहाँ परिजन अपनी दृष्टि से विवाह निश्चित कर देते हैं, किन्तु जब बालवय में परिणयसूत्र में बंधे वे पति-पत्नि युवावस्था में आते है, तो स्वभाव की भिन्नता के कारण व अन्य भिन्नताओं के कारण दोनों में तनाव उत्पन्न हो जाता है।
अनेक समाज में दहेज प्रथा भी प्रचलित है। यह दहेज प्रथा भी ससुराल पक्ष के लोभी होने पर अनेक परिवारों व अनेक लड़कियों को तनावग्रस्त करती
है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि समाज में व्याप्त कुरीतियाँ तनाव का कारण बनती है। जिस समाज में स्त्री-पुरुष को समान अधिकार नहीं मिलते हैं, वहाँ स्त्रियाँ हीनभावना के कारण व पुरुष अपने अहंकारवश तनावग्रस्त बने रहते हैं। मात्र यही नही, कभी-कभी सामाजिक प्रतिष्ठा के अनुकूल वस्त्र आभूषण के अभाव के कारण भी विशेष रूप से स्त्रियाँ तनावग्रस्त बनी रहती हैं और उनकी तनावग्रस्तता व व्यवहार पुरुषों को भी प्रभावित करता है। इन छोटे-मोटे तनावों के कारण उनके दाम्पत्य जीवन में भी बिखराव आ जाता है और जिसके कारण
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