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मात्र ज्ञाता - द्रष्टाभाव की स्थिति होती है, तब इच्छा के अभाव के कारण तनावमुक्त रह सकता है। तनावयुक्त अवस्था ही कषाय आत्मा की अवस्था है। क्योंकि तनाव का प्रमुख हेतु ही कषाय है ।
इस प्रकार आत्मा के आठ प्रकारों में द्रव्य आत्मा विशुद्ध रूप होने से तनाव रहित होती है । यद्यपि यह बात केवल निर्वाण प्राप्त आत्मा के सम्बन्ध में ही समझना चाहिए ।
जो द्रव्य आत्माएँ योग और कषाय से युक्त हैं, वे तो तनाव की स्थिति में होते ही हैं, क्योंकि उपयोग को ही आत्मा का लक्षण माना गया है, किन्तु यह उपयोग अपने शुद्ध स्वभाव में है तो निर्विकल्पता होने के कारण तनावमुक्ति की अवस्था होती है। इस प्रकार मात्र शुद्ध द्रव्य आत्मा निश्चित ही विकारमुक्त होने से तनावमुक्त मानी गई है। शेष छः प्रकार की आत्माएँ तनावयुक्त भी हो सकती हैं और तनावमुक्त भी हो सकती हैं, किन्तु जहाँ तक कषाय आत्मा का प्रश्न है, वह नियमतः तनावयुक्त ही होती है ।
कहा भी गया है - "क्रोध से आत्मा नीचे गिरता है। मान से अधम गति प्राप्त करता है । माया से सद्गति का मार्ग अवरूद्ध हो जाता है। लोभ से इस लोक और परलोक दोनों में ही भय (कष्ट, दुःख) होता है । "10 "क्रोधादि कषायों को क्षय किए बिना केवलज्ञान ( तनावमुक्ति) की प्राप्ति नहीं होती ।"11
इस प्रकार आठ प्रकार की आत्माओं में शुद्ध द्रव्य आत्मा तनावमुक्त व कषाय आत्मा को तनावयुक्त कहा जाता है। शेष छः आत्माएँ तनावयुक्त भी हो सकती हैं और तनावमुक्त भी हो सकती हैं ।
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आत्मा का एक वर्गीकरण गुणस्थानों के आधार पर भी किया गया है। गुणस्थान निम्न चौदह माने गए हैं
'उत्तराध्ययनसूत्र 1/54
" आवश्यकनिर्युक्ति – 92
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