________________
सहेतुक चित्त तीन प्रकार का होता है 1. अकुशल, 2. कुशल और 3. अव्यक्त । इनमें लोभ, द्वेष और मोह - ये तीन अकुशलचित्त के प्रेरक होने से ये तनावयुक्त चित्त है। जब अलोभ, अद्वेष और अमोह से परोपकार में प्रवृत्त होता है तो वह कुशलचित्त कहा जाता है। कुशलचित्त में दूसरों के प्रति परोपकार की भावना या दूसरों के हित की चिंता तो होती ही है, अतः यह भी सहेतुक होता है, इसमें उत्पन्न तनाव यद्यपि कम तीव्र होते हैं । अव्यक्त चित्त दो प्रकार का होता है 1. विपाक सहेतुक चित्त और 2 क्रिया सहेतुक चित्त । जब सहेतुक चित्त की प्रवृत्ति पूर्वकृत कर्म के फल भोग के रूप में मात्र वेदनात्मक (विपाक - चेतना या कर्मफल–चेतना के रूप में) होती है, तो वह विपाक सहेतुक चित्त होता है। इस चित्त में मात्र वेदनात्मक प्रवृत्ति होने से यह तनावयुक्त चित्त है । इसी के विपरीत तनावमुक्ति प्राप्त करने के लिए या वीतराग, वीतृष्ण एवं अर्हत् पद की प्राप्ति के लिए जिसमें क्रिया - व्यापार की जो चेतना है, वह क्रिया सहेतुक चित्त' कहा जाता है । यद्यपि क्रिया - सहेतुक चित्त में क्रिया के प्रेरक अलोभ, अद्वेष और अमोह के तत्त्व तो उपस्थित रहते हैं, तथापि तृष्णा के अभाव के कारण व्यक्ति तनावग्रस्त नहीं होता। इस प्रकार जहाँ सहेतुक कुशलचित्त में अलोभ, अद्वेष और अमोह भी तनाव (कर्म) के प्रेरक होते हैं, क्योंकि उसमें कहीं-न-कहीं पर के प्रति हितबुद्धि के कारण सूक्ष्म रागभाव तो होता है । सहेतुक अव्यक्त चित्त में अलोभ, अद्वेष और अंमोह के कर्म-प्रेरक तो होते हैं, लेकिन उसमें तृष्णा ( रागभाव) का अभाव होता है, अतः सहेतुक अव्यक्त चित्त तनावमुक्त होता है । इन तीन सहेतुक चित्तों के बावन चैत्तसिक धर्म (चित्त अवस्थाएँ) माने गए हैं। जिनमें तेरह अन्य समान, चौदह अकुशल और पच्चीस कुशल होते हैं। उनका विवरण इस प्रकार है
(अ) अन्य समान चैत्तसिक
जो चैत्तसिक कुशल, अकुशल और अव्यक्त सभी में समान रूप से रहते हैं, वे अन्य समान कहे जाते हैं। अन्य समान चैतसिक भी दो प्रकार के हैं
Jain Education International
96
For Personal & Private Use Only
―
www.jainelibrary.org