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व्यक्ति की चेतना पर दबाव नहीं बनता, क्योंकि वह अवचेतना स्तर पर होता है। व्यक्ति बाह्य व आन्तरिक दोनों ही प्रकार की प्रतिक्रियाओं को रोक लेता है। संज्वलन कषाय का उदय रहने पर भी व्यक्ति में काषायिक-भावों की परिणिति मन्दतम होती है। व्यक्ति हिंसादि पापों से विरक्त होकर, इष्टानिष्ट भावों से परे होकर तथा समभावपूर्वक साधना मार्ग पर चलता है। इस स्तर पर उसका मानसिक संतुलन बना रहता है। संज्वलन कषाय वाला व्यक्ति विवेक, क्षमा, सहजता, शांति, सहनशीलता आदि गुणों से युक्त होता है। संज्वलन कषाय के लिए व्यक्ति को दिग्भ्रमित करता है। जैसे प्रसन्नचंद्र राजा दीक्षा के बाद मन ही मन में भावों से युद्ध कर रहे हैं, यद्यपि उस समय उनके चैतसिक स्तर पर कषाय भावों का उदय हुआ किन्तु जैसे ही युद्ध करने में मुकुट को शस्त्र बनाने के लिए सिर पर हाथ रखा तो अपने मुनि होने का एहसास हुआ और अपनी सोच पर पश्चाताप करते हुए संज्ज्वलन कषाय को भी समाप्त कर सिद्ध-बुद्ध मुक्त हो गए। 'जिस कषाय का उदय होने पर जीव अति अल्प समय के लिए अवचेतन स्तर पर उससे अभिभूत होता है, उसे संज्वलन कषाय कहते हैं। 60 जितने अल्प समय के लिए संज्वलन कषाय का उदय होता है, उतने ही अल्प समय के लिए व्यक्ति तनावग्रस्त होता है ओर क्षण भर में उस तनाव से मुक्त भी हो जाता है। भगवान् महावीर ने अपना निर्वाण समय निकट जानकर गौतम गणधर को उनके अपने प्रति रहे हुए राग भाव को दूर करने के लिए अन्यत्र भेज दिया। जब प्रभु निर्वाण को प्राप्त हो गए तो गौतम गणधर को कुछ समय के लिए राग के कारण शोक हुआ, किन्तु, उसी शोक की अवस्था में विचार करते-करते जब उन्होंने प्रभु की वीतरागता को समझा तो स्वयं उन्होंने भी प्रभु के प्रति उस प्रशस्त रागभाव का त्याग कर दिया और प्रशस्त राग भाव संज्जवलन कषाय के क्षय होते ही केवलज्ञान को प्राप्त हो गए। अल्प समय का यह शोक रूप तनाव संज्वलन कषाय के उदय के परिणामस्वरूप ही था।
.60 कर्म विज्ञान - भाग-4, पृ. 132 .
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