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राग-द्वेष तनाव के मूल कारण हैं और कषाये व्यक्ति की तनायुक्त स्थिति में वृद्धि करती हैं। कषाय से युक्त्त व्यक्ति तनावग्रस्त होता है और तनावग्रस्त 'व्यक्ति की सम्यक् बुद्धि अर्थात् विवेक शक्ति नष्ट हो जाती है। वह तनावमुक्त होने के लिए भी कषाय की वृत्तियों का पोषण करने लगता है, तब व्यक्ति में कषाय की वृत्तियाँ अधिक बढ़ जाती हैं तो ये कषाय की वृत्तियाँ मन को चंचल या अस्थिर बना देती हैं मन की अस्थिरता तनाव का लक्षण है।
भगवतीसूत्र व कर्मग्रन्थों के आधार पर कषायों की चर्चा -
तनाव की उत्पत्ति के प्रमुख रूप में तीन कारण होते हैं -1. बाह्य परिस्थिति, 2. व्यक्ति की मनोवृत्ति और 3. बाह्य परिस्थिति और मनोभाव के संयोग से उत्पन्न चैत्तसिक अवस्थाएँ। इनमें बाह्य परिस्थितियाँ पूर्णतः व्यक्ति के अधिकार में नहीं होती हैं, अतः उनसे उत्पन्न तनावों का निराकरण तो उन परिस्थितियों के निवारण से ही सम्भव है और यह पूर्णतः व्यक्ति के अधिकार में नहीं है, किन्तु जहाँ तक मानसिक कारणों का प्रश्न है वे मूलतः इच्छाओं, आकांक्षाओं और अपेक्षाओं अथवा उनकी पूर्ति न होने के कारण होते हैं। इनके मूल में कहीं-न-कहीं क्रोध, मान, माया और लोभ की वृत्ति भी कार्य करती है। इसे भी यदि संक्षिप्त करके कहें, तो उनमें भी राग व द्वेष ये दो ही मूल कारण हैं। राग की उपस्थिति में द्वेष का जन्म होता है और राग व द्वेष की वृत्तियों से क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय जन्म लेती हैं ये कषायें ही मूलतः तनाव वृद्धि और लेश्या के कारण होती हैं। जैन धर्मदर्शन में इन कषायों को ही दुःख का मूलभूत कारण माना गया है। ये व्यक्ति की आध्यात्मिक क्षमताओं को क्षीण कर देती हैं और व्यक्ति तनावग्रस्त बन जाता है। अतः तनावों की इस विवेचना में कषायों के स्वरूप को समझना भी आवश्यक है।
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