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10. प्रार्थना प्रार्थना करके मांगना, याचना करना अर्थात् इच्छित वस्तु के
लिए याचना करना प्रार्थना है ।
11. लालपनता
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लालपनता है ।
12. कामाशा
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काम की इच्छा कामाशा है ।
इष्ट वस्तु के न मिलने पर बार-बार प्रार्थना करना
13. भोगाशा
कामाशा में शब्द एवं रूप की कामना होती है। गंध, रस, और स्पर्श से युक्त पदार्थों को भोगने की इच्छा भोगाशा है ।
14. जीविताशा जीवित रहने की जो इच्छा बनी रहे वह जीविताशा है।
जीवित रहने की यह इच्छा अन्तकाल तक बनी रहती है। जीवित रहने की यह इच्छा ही जीविताशा है ।
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लोभ का आधार इच्छा है और इच्छा या आकांक्षा ही तनाव उत्पत्ति का कारण है।
उपर्युक्त चार कषाय का विवेचन भगवतीसूत्र में इसी दृष्टि से किया है कि ये कषायों के विभिन्न रूप हैं, इनमें से किसी भी रूप को अपनाने से दुःख मिलता है और ये सभी तनाव उत्पत्ति के कारक तत्त्व हैं।
कर्मग्रन्थ में कषाय का स्वरूप
कर्मग्रंथ में कषाय को चारित्रमोहनीय का भेद कहा है । चारित्रमोहनीय के दो भेद कषाय मोहनीय व नो कषायमोहनीय है। उनमें से कषाय मोहनीय के • अनन्तानुबन्धी आदि सोलह और नोकषायमोहनीय के नौ भेद कहे गए हैं। 48 अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानी, प्रत्याख्यानी और संज्वलन । इनके क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार - चार भेदों का विस्तार से विवेचन इसी अध्याय में पहले कर चुके हैं, अतः इनके विस्तार में न जाकर यहाँ हम नौ कषायों की चर्चा करेंगे ।
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48 कर्मग्रंथ भाग - 1, गा. 17 मुनि श्री मिश्रीमल जी
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