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और न लाइनिज़ के समान उनमें पूर्व स्थापित सामंजस्यवाद मानता है, अपितु वह डेकार्ट के समान उनमें क्रिया-प्रतिक्रियावाद को स्वीकार करता है। इस प्रकार तनाव का जन्म मन या मनोवृत्ति में होता है और उसकी अभिव्यक्ति शरीर के माध्यम से होती है। जो लोग दैहिक अवस्था को ही तनाव मान लेते हैं, वे लोग उसके मूल कारण तक नहीं पहुंच पाते हैं। वस्तुतः तनाव मनोदैहिक स्थिति है जो दोनों के बीच क्रिया-प्रतिक्रिया रूप सह सम्बन्ध से उत्पन्न होता है।
आधुनिक मनोविज्ञान में चेतना की अपेक्षा से मन के तीन स्तर माने हैं।" 1. अचेतन, 2. अवचेतन और 3. चेतन। आचार्य महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान की भाषा में अचेतन को कर्म शरीर के साथ अवचेतन (आवरित चेतना) को तेजस शरीर के साथ और चेतन को औदारिक या स्थूल शरीर के साथ जोड़ा है। हमारा चेतन मन या जाग्रत करन ही तनाव का और तनावमुक्ति का कारण है। उसकी पृष्ठभूमि में ही चेतना के ये अनेक स्तर हैं।
अचेतन मन जैनदर्शन की भाषा में द्रव्यमन है। इसमें दमित वासनाएँ और संस्कार बैठे रहते हैं और अवचेतन के माध्यम से चेतना के स्तर पर आने का प्रयास करते हैं। . हम ज्यादा काम चेतन मन से लेते हैं। हमारी इच्छाएँ और आकांक्षाएँ इसी में उत्पन्न होते हैं। इच्छाएँ मन के स्तर पर होती हैं, जब इन इच्छाओं या आकांक्षाओं का दमन करते हैं तो वे अचेतन मन में चली जाती है और अवचेतन मन में बार-बार उस इच्छा को उभारती रहती है, अर्थात् चेतना के स्तर पर लाने का प्रयास करती है। फ्रायड के अनुसार, अर्द्धचेतन (अवचेतन) चेतन और अचेतन क्षेत्र के बीच एक पुल (Bridge) का काम करता है। अनेक इच्छाएँ और वासनाएँ सामाजिक आदर्शों के विपरीत होती है, वे हमारी चेतना के द्वारा तिरस्कृत कर अचेतन मन में डाल दी जाती है, लेकिन अचेतन मन में रहते हुए
" आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान - अरूणकुमार सिंह, आशीषकुमार सिंह, पृ. 570 38 अवचेतन मन से सम्पर्क - आचार्य महाप्रज्ञ, पृ.1 (प्रस्तुति से)
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