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अतीत और भविष्य की कल्पनाएँ और तनाव
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मनुष्य ज्यादा तनाव में होता है, जो भार उसे उठाना नहीं चाहिए वह उससे ज्यादा भार ढोता है। अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पना का भार । अतीत में कुछ ऐसी घटनाएँ घटी होती है कि हम वर्तमान में उसे बार-बार याद करके हमारे काम करने की शक्ति को कम कर देते हैं, जिससे हमारा कार्य नहीं हो पाता व एक और नया भार या तनाव पैदा हो जाता है। पूर्व स्मृति का भार तो कम हुआ नहीं था, कि एक और स्मृति बन गई। अतीत में क्या हुआ, कैसे हो गया था, कोई हमसे दूर हो गया, इन सबका हम इतना बोझ उठाते हैं कि पूरी तरह तनाव से ग्रस्त हो जाते हैं ।
56 चेतना का ऊर्ध्वारोहण – आचार्य महाप्रज्ञ जी, पृ. 9
57 नटी - प
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इसी प्रकार जटिल होता है कल्पना का भार । कल्पना में हम इतने डूब जाते हैं, हमारी इतनी आकांक्षाएँ होती हैं, कि हम उसी कल्पना में उलझ कर रह जाते हैं और भारी हो जाते हैं। हमें भविष्य की इतनी चिंता रहती है कि हम वर्तमान को तनावयुक्त कर देते हैं। भूत और भविष्य के बोझ को उठाते-उठाते हम वर्तमान को भी तनाव में डुबो देते हैं। वर्तमान में कर रहे कार्य को हम ठीक से नहीं कर पाते, क्योंकि हमारी आंतरिक शक्ति कम हो जाती है । कल्पना किए गए कार्य को करने में उतना भार नहीं होता, जितना कि हमारे मस्तिष्क में उस कल्पना का भार होता है। आचार्य महाप्रज्ञजी ने अपनी कृति 'चेतना का ऊर्ध्वारोहण' में लिखा है जितना भार कल्पना और स्मृति का होता है, वास्तविकता का नहीं होता । 7
लोग कहते हैं ये जंगल बड़ा भयानक है। शेर, चीता दिन में भी दहाड़ते हैं कई जंगली जानवर हैं, इंसान की महक मिलते ही उसे देखते ही खा जाते हैं। यह कल्पना में काफी भयावह है । किन्तु जब वन में से गुजरते हैं उस समय इतना भय नहीं होता, जितना कि हमारी कल्पना में होता है, हमारी स्मृति में
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