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कारण बनत है।
है और वह उपास्य को भी भला-बुरा कहने से नहीं चूकता है। यह भी तनाव की स्थिति का ही सूचक है। धर्म के नाम पर दो पीढ़ियाँ व दो वर्गों में भी तनाव के कारण बनते हैं।
आज यह देखा जाता है कि व्यक्ति धर्म के क्षेत्र में भी अपने अहं का पोषण एवं वर्चस्व की प्राप्ति चाहता है और अपनी मिथ्या प्रतिष्ठा की कामना में अपनी सामर्थ्य से अधिक धन का व्यय करके भी तनावग्रस्त बन जाता है।
धर्म के नाम पर होने वाले साम्प्रदायिक संघर्ष विरोधी धर्मों में एक दूसरे के प्रति घृणा और विद्वेष की भावना उत्पन्न करते हैं और घृणा और विद्वेष की स्थिति ही व्यक्ति को तनावग्रस्त बनाती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि धर्म जो मूलतः तनावमुक्ति का साधन था, वही तनावों की उत्पत्ति का कारण बन जाता है।
तनावों के मनोवैज्ञानिक कारण -
वस्तुतः तनाव एक मानसिक अवस्था है, जिसका प्रभाव हमारे शरीर और व्यवहार पर पड़ता है, फिर भी तनाव का मूल आधार तो मन ही है, क्योंकि तनाव का जन्म विकल्पों से होता है। विकल्प इच्छाओं, आकांक्षाओं और वासनाओं के कारण मन में उत्पन्न होते हैं। अनुकूल विकल्प अपनी पूर्ति की अपेक्षा रखते हैं और पूर्ति न होने के कारण तनाव को जन्म देते हैं। अवांछनीय विकल्प भी हमारी चेतना में यह भावना जागृत करते हैं कि उनकी पूर्ति का प्रयास किया जाए। यहाँ अवांछनीय से हमारा तात्पर्य अनुचित व अनैतिक से है। सभी विकल्प अपनी पूर्ति की अपेक्षा रखते हैं और पूर्ति न होने पर वे विकल्प विद्वेष, घृणा और आक्रोश को जन्म देते हैं, जो नियमतः तनाव के कारण बनते हैं। जब हमारी इन्द्रियों और चेतना का सम्पर्क बाह्य जगत से होता है, तो उसके परिणामस्वरूप कुछ अनुभूतियाँ सुखद व कुछ दुःखद लगती हैं। सुखद की पुनः प्राप्ति की इच्छा जागती है तो दुःखद का कैसे वियोग हो, यह चिंता
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