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अध्याय-2 तनावों के कारण : जैन दृष्टिकोण
जैन दृष्टिकोण के अनुसार तनाव का मुख्य कारण राग-द्वेष एवं कषाय हैं। जैनधर्म में मूल ग्रन्थों में भी दुःख या संसार परिभ्रमण के हेतु राग-द्वेष एवं कषाय बताए गए हैं। दुःखी होने का अर्थ तनावग्रस्त होना है। दशवैकालिकसूत्र में जहाँ चारों कषायों को जन्म-मरण का कारण बताया गया है'. वहीं आचारांगसूत्र में राग-द्वेष एवं कषाय को दुःख का हेतु कहा गया है।
वस्तुतः कषाय या राग-द्वेष अलग-अलग नहीं है। कषाय के दो मुख्य भेद हैं - राग एवं द्वेष और इन्हीं दोनों से क्रोध, मान, माया और लोभ रूप चार कषायों का जन्म होता है। इस विषय में विस्तार से चर्चा तो हम चतुर्थ अध्याय में करेंगे। यहाँ केवल इतना जान लेना आवश्यक है कि जैनदर्शन में तनाव का मुख्य कारण राग-द्वेष और तद्जन्य कषाय है। क्योंकि इनके कारण से चित्तवृत्ति का समत्व भंग होता है और जहाँ चित्तवृत्ति का समत्व भंग होता है, वहाँ तनाव अवश्य जन्म लेता है।
__ यद्यपि जैनदर्शन में तनाव के मुख्य कारण तो राग-द्वेष हैं, किन्तु मनोविज्ञान की दृष्टि में दैनिक जीवन में और भी ऐसे कई कारण हैं, जो व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करते हैं।
1. आर्थिक विपन्नता और तनाव -
भगवान् महावीर के मुख्य पाँच व्रतों में एक व्रत है - अपरिग्रह। अपरिग्रह से तात्पर्य है – संचय नहीं करना। संचय-वृत्ति में भी धन संचय और भोग.
। दशवैकालिक -8/40
आचारांग - 2/1
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