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सीमित रखेगा तो भी पारस्परिक ईर्ष्या की भावना जन्म नहीं लेगी और इस प्रकार व्यक्ति तनावों से मुक्त रह सकेगा। परिग्रह परिमाण व्रत से शोषण की प्रवृत्ति कम होगी और भोगोपभोग परिमाण व्रत से भोगवादी जीवन दृष्टि पर अंकुश लगेगा और इस प्रकार व्यक्ति तनावों से मुक्त हो सकेगा । इस विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि जैन आचारदर्शन एक ओर तनावों की उत्पत्ति के मूल कारण की गवेषणा करता है, तो दूसरी ओर उनके निराकरण का उपाय भी सुझाता है।
पारिवारिक असंतुलन और तनाव
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति पारस्परिक हितों के साधन के लिए एक सूत्र में बंधे हों या एक दूसरे के सहयोग के लिए साथ रहते हों, तब वह परिवार कहलाता है, जिसका प्रत्येक सदस्य पारस्परिक स्नेह, सहयोग और विश्वास से जुड़ा होता है । किन्तु जब इन पारस्परिक स्नेह, सहयोग और विश्वास के धागों में खिंचाव आता है और परिवार टूटने या बिखरने लगता है, तब परिवार के प्रत्येक सदस्य में तनाव उत्पन्न होता है तथा परिवार की शांति भंग हो जाती है । परिवार एक ऐसा समूह है, जिसकी एक भी इकाई यदि परिवार की एकजुटता के इन सिद्धांतों के विरूद्ध जाए या पारिवारिक व्यवस्था के नियमों को तोड़े तो पूरा परिवार तनावग्रस्त हो जाता है।
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परिवार की परिभाषा
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समाजशास्त्री इय़ान-राबर्टसन के अनुसार " - "परिवार लोगों का अपेक्षाकृ त स्थायी समूह है, जो वंश-परम्परा, विवाह अथवा एक-दूसरे के अंगीकरण के
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Magill, N. Frank (1995) International Encyclopedia of Sociology Fitzroy Dearbon publishers, USA, Vol. 1, Page 506.
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