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स्वतन्त्रता, विवेकादि गुण तनावमुक्ति में साधक है और चारित्रमोहनीय तनावमुक्ति में भी बाधक हैं तथा मानसिक शांति को भंग करने वाला है। "चारित्रमोहनीय के कषायवेदनीय और नोकषायवेदनीय भेद कर्म बंध के हेतु है 87 और ये ही तनाव उत्पत्ति के कारण भी है। "हास्यादि नोकषाय मोहनीय एवं कषाय मोहनीय चुतुष्क दोनों ही जब उदय में आते हैं तो व्यक्ति की स्वतन्त्रता को भंगकर उसे तनावग्रस्त बनाते हैं। अतः कषायमुक्ति ही वास्तविक मुक्ति है क्योकि वही तनावमुक्ति है।
परवर्ती जैन दार्शनिक ग्रन्थो में राग-द्वेष और कषाय का सह-सम्बन्ध
जैन दर्शन के अनुसार वासना या भोग आसक्ति से राग का जन्म होता है, फिर भोगासक्ति या भोगाकांक्षा की पूर्ति में जो बाधक तत्व होते हैं, उनके प्रति द्वेष का जन्म होता है। वस्तुतः राग-द्वेष सहजीवी हैं। जहाँ राग होता है वहाँ द्वेष भी अव्यक्त रूप से तो उपस्थित रहता है, इसीलिए उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि राग-द्वेष कर्म या संसार परिभम्रण के बीज हैं।88 राग-द्वेष से ही कषायों की उत्पति होती है।
परवर्ती कालीन जैनग्रंथ 'विशेषावश्यक भाष्य' (छठवीं शताब्दी) में राग-द्वेष का कषायों से क्या और कैसे सम्बंध है, इसका विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है। उसमें विभिन्न नयों के आधार पर यह बताया गया है कि संग्रहनय की दृष्टि से क्रोध और मान द्वेष रूप हैं तथा माया और लोभ रागरूप हैं। इसी बात को प्रकारान्तर से स्थानांग-सूत्र में भी बताया गया है। उसमें कहा गया है कि राग से माया और लोभ व द्वेष से क्रोध और मान का जन्म होता है। क्योंकि क्रोध और मान में दूसरे के अहित या नीचा दिखाने की भावना होती है। अतः ये दोनों द्वेषजन्य हैं। जबकि माया और लोभ दोनों रागरूप हैं, क्योंकि इनमें अपने
" तत्वार्थसूत्र :- अध्याय 8/9-10 88 उत्तराध्ययन
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