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मुख्य रूप से शास्त्रों में कषाय और योग इन दो बंध हेतुओं का कथन है। तत्वार्थसूत्र व समवायांग में बंध के पाँच हेतु बताए गए हैं -1, मिथ्यात्व, 2. अविरति, 3. प्रमाद, 4. कषाय और 5. योग। इन पाँच में से भी कषाय व योग -इन दो को ही बन्ध का प्रमुख कारण माना गया है। तनाव उत्पत्ति का मूल कारण राग-द्वेष हैं और आत्मा कलुषित भी इन्हीं से होती है। राग-द्वेष होने पर ही जीव में कषाय उत्पन्न होते हैं। तत्त्वार्थसूत्र की हिन्दी व्याख्या में केवलमुनि लिखते हैं कि -"आत्मा के कलुषित परिणाम कषाय हैं।"76 कषाय के चार प्रकार कहे गये हैं –1. क्रोध, 2 मान, 3 माया और 4 लोभ। ये चारों ही तनाव उत्पन्न करते हैं। कषाय की तीव्रता तनाव के स्तर को बढ़ाती है और कषाय की मन्दता तनाव के स्तर को कम करती है।
कषायों के निमित्त से कर्मों का बंध निरन्तर होता रहता है। "यह बंध चार प्रकार का है - प्रकृति बंध, प्रदेश बंध, अनुभाग बंध और स्थिति बंध । कर्मों के स्वभाव को प्रकृति बंध कहते हैं। कर्म पुद्गलों का आत्मा के साथ सम्बद्ध रहने की काल-मर्यादा को स्थिति बंध कहते हैं। कर्म फल की मंदता या तीव्रता को अनुभाग बंध व कर्म-पुद्गल आत्मा के साथ कितनी मात्रा में चिपकते हैं, उसे प्रदेश बन्ध कहते है। कोई भी कर्म उपर्युक्त चार प्रकार से बंधता है, किन्तु कर्मों का स्थिति बंध एवं फल में हानि-वृद्धि तो कषाय की प्रवृत्ति से होती है। कषाय की तीव्रता ही कर्मो की स्थिति में वृद्धि करती है तथा कषाय की मंदता से स्थिति में कमी आती है। इस तरह तनाव एवं कषाय का भी सहसम्बन्ध मानना होता है। जब व्यक्ति में कषाय प्रवृत्ति अधिक होती है तब उसकी विवेक बुद्धि नष्ट होकर व्यक्ति को जीवन पर्यन्त के लिए तनावग्रस्त बना देती है। जिसे हम अनन्तानुबंधी कषाय कहते हैं। चारों कषायों में से एक भी कषाय की तीव्रता अगर व्यक्ति में है तो, शेष कषायों प्रवृत्तियों में भी वृद्धि हो जाती है, जो
74 मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमाद कषाययोगा बन्धहेतवः ।, तत्वार्थसूत्र - अध्याय 8 सूत्र-1 75 समवायांग - समवाय - 5 " तत्त्वार्थसूत्र - अध्याय 8, पृ. 352 (केवलमुनिजी) " प्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशास्तद्विधयः । -तत्वार्थसूत्र - अध्याय - 8/4
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