Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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मुनि श्रीमिश्रीमल 'मधुकर' : जीवन-वृत्त : २३
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उसे अनायास ही हृदयंगम कर सकता था. भगवान् महावीर द्वारा अंगीकृत भाषा-नीति का वे पूरी तरह अनुसरण करते थे. यही कारण है कि उनके प्रवचनों ने सहस्रों भद्रात्माओं को प्रभावित किया है. न जाने कितने पापी पाप-पथ का परित्याग करके धर्म और नीति के मार्ग के राही बने हैं ! वे कभी राजस्थानी में तो कभी खड़ी बोली में प्रवचन करते थे. जैसा रोगी, वैसा ही उपचार करना उन्हें खूब आता था. जिन प्रदेशों में उनका विचरण हुआ, वहाँ की जनता आज भी स्वामीजी की प्रवचनशैली को स्मरण करती है और मन मसोस कर रह जाती है. आत्म-दृष्टि प्राप्त करा देने का उनका ढंग और तौर-तरीका अलग था. वे कहते थे आत्मदृष्टिप्राप्त भक्त, मैं उसे मानता हूँ जिसके जीवन में प्रस्तुत कवि-कड़ी का भाव प्रतिबिंबित होता है
पर-घर पाऊँ पूजा या, निज घर अपमान मिले; दोनों में ही मुस्कान रहे, मन के भीतर भी श्राह न हो। पर पीड़ा में ही रोऊँ जीभर, पर सुखको अपना सुख सम.,
सुखियों से भी मुझको दाह न हो ! जीवन के प्रति उनकी दृष्टि थी कि संसार से भागकर तो तुम गिरि-कन्दराओं में भी सुख प्राप्त नहीं कर सकते. जीवन में भागने की नहीं, दृष्टि बदलने की आवश्यकता है !
जीवन सरोज : कुछ पांखुरियां
एक: वर्धमान महावीर के शब्दों में सन्त, अप्रतिबद्ध विहारी होता है. जीवन की ऐहिक शृखलाओं के बंधन से मुक्त, उन्मुक्त आकाशचारी की तरह सर्वत्र विचरण करता है. उसका लक्ष्य एक ही होता है कि स्व-साधना वर्धमान होती रहे और पर को आत्मसाधना की प्रेरणा मिलती रहे ! स्वामीजी म. अपने गुरु-भाइयों सहित पद-विहार के पथ पर बढ़ते-बढ़ते अपनी जन्मस्थली डांसरिया के समीप टाडगढ़ जा निकले ! साम्प्रदायिक वर्ग-विभाजन की दृष्टि से स्वामीजी म. तेरापंथी परिवार में जन्मे थे. टाडगढ़ में आज भी विपुल मात्रा में तेरापंथी धावकों के घर हैं. उस समय भी पर्याप्त थे. स्वामीजी भिक्षार्थ पधारे. अनेक घरों में पदार्पण हुआ! कहीं-कहीं आहार नहीं मिला. निवास पर आये. आहार से निवृत्त हुये. ब्यावर के कुछ सज्जन भी आ गये. कुछ जैनेतर बन्धुओं ने उनसे कहा : “मुनिश्री को यात्रा में पर्याप्त असुविधाओं का सामना करना पड़ा. यहाँ पर भी दिक्कत उठानी पड़ी. यहाँ पर तेरापंथी लोगों ने मुनिश्री को पत्थर बहराये. आगत व्यक्तियों के मस्तिष्क में बात बैठ गई कि स्वामीजी म० को आहार के स्थान पर तेरापंथी भाइयों ने पत्थर बहराये. उन सज्जनों ने ब्यावर में उक्त बात कही. ब्यावर के स्थानकवासियों के मस्तिष्क उत्तेजित हो गये कि हमारे महाराज को पत्थर कैसे बहरा दिये ! तेरापंथ के आचार्य (तुलसी) ब्यावर आ रहे हैं, हम भी उनका नगर प्रवेश के समय काले झण्डों से स्वागत करेंगे ! स्वामीजी म. जितने समय रहना था, वहाँ रहे. आगे प्रस्थान कर दिया. संयोग की बात कि घूमते हुए ब्यावर ही पदार्पण हो गया. चर्चा सामने आई . स्वामीजी म. ने स्पष्टीकरण दिया : "नहीं, टाडगढ़ में हमारे साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई. हमें किसी ने भी पत्थर नहीं बहराये !" ब्यावर के तेरापंथी श्रावकों ने और स्थानकवासी श्रावकों ने इस बात को लेकर रोटी-बेटी का सम्बन्ध विच्छेद करने का भीष्म निर्णय कर लिया था. परन्तु मुनिश्री के स्पष्टीकरण से स्थिति स्पष्ट हो गई और अशान्त वातावरण शान्ति में परिणत हो गया.
MAY
TANA
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