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चाती धाम दर्शन
मार्गणा
अगति-गति से रहित जीवों की गति को
___ अगति या सिद्धगति कहते हैं। इनके गति नहीं मागंणा-जिन धर्म विशेषों से जीवों की ।
___ है, ये गति रहित है। खोज हो सके, उन धर्म विशेषों से जीवों को खोजना मार्गणा है । ये १८ होते है ।
७. इन्द्रियजाति मार्गणा ६. गति मार्गणा
इन्द्रिय जाति-इन्द्रियावरण के क्षयोपशम ,
मे होने वाले संमारी आत्माने वाहा' चिह्न गति मार्गणा-गति मार्गणा नामकर्म के ।
विशेष को इन्द्रिय कहते है। इस की मार्गणा उदय से उस उस गति विषयका भावके कारण
५+१ है। भूत जीव का अवस्था विशेष को गति वाहने
(१) एकेन्द्रियसे-पंचेन्द्रिय तक का है । इस गति की मार्गणा ४+१ है।
वर्णन हो चुका है। (१) नरक गति-मध्य लोक के नीचे
___अतिन्द्रिय जाति-जो इन्द्रियों में (द्रव्येसात नरक है, उनमें नारकी जीव रहते है।
न्द्रिय व भावेन्द्रिय दोनों से) रहित है वह उन्हें बहुत काल पर्यत घोर दुःख सहना पड़ता।
अतीन्द्रिय कहलाते है। है, उनकी गति को नरक गति कहते है । (२) तिर्यच गति-नारकी, मनुन्य व
८. काय मार्गणा देव के अतिरिक्त जितने संसारी जीव है, वे सब काय-आत्मप्रवृत्ति अर्थात् योगसे संचित तिर्यंच कहलाते है । एकेन्द्रिय (जिसमें निगोद पुद्गलपिण्ड को काय कहते है । इसकी मार्गणा भी शामील है), द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, अतुरिन्द्रिय, असंजी पंचेन्द्रिय ये नो नियम से विर्यच होने अकाय-जिनके कोई प्रकार का काय है और सिंह, घोड़ा, हाथी, कबुनर मत्स्य आदि नहीं रहा वे अकायिक (अकाय ) कहलाते है । संज्ञी जीब भी तिर्यच होते है। उनकी गनि को विर्यच गनि कहते है ।
९. योग मार्गणा (३) मनुष्य गति-स्त्री, पुरुष, बालक,
योग-मन, वचन, काय के निमित्त से बालिका मनुष्य कहे जाते है, इनकी गति को आत्मप्रदेश के परिस्पंद (हलन, चलन) का मनुष्य गति कहते है।
कारणभूत जो प्रयत्न होता है उसे योग कहते (४) देव गति-भवनबासो, व्यन्तर
है इस की मार्गणा १५+१ है । (जिन के निवास स्थान पहले नरक पृथ्वीके (१) सत्यमनो योग-सत्य वचन के खर भाग और पक भाग में है। ) ज्योतिष्य कारणभूत मनको सत्यमन कहते है, उसके (सूर्य, चन्द्र, तारादि) और वैमानिक (१६ निमित्त से होनेवाले योग को सत्यमनो योग स्वर्ग, नव वेवक, नत्र अनुदिश, पंचानुत्तर में कहते है । रहनेवाले देब) इन चार प्रकार के देवों की (२) असत्यमनो योग-असत्य वचन के गति को देव गति कहते है।
. कारणभूत मन को असत्यमन कहते है और