Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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(XLIV )
स्कन्ध) मूर्त्त होन के कारण दृश्य है । हमारे जगत् की विविधता जीव और पुद्गल के संयोग से निष्पन्न होती है ।""
" प्रस्तुत आगम का पूर्ण आकार आज उपलब्ध नहीं है, किन्तु जितना उपलब्ध है, उसमें हजारों प्रश्नोत्तर चर्चित हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से आजीवक संघ के आचार्य मंखलिगोशाल, जमालि, शिवराजर्षि, स्कन्दक संन्यासी आदि प्रकरण बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । तत्त्वचर्चा की दृष्टि से जयन्ती, मद्दुक श्रमणोपासक, रोह अनगार, सोमिल ब्राह्मण, भगवान् पार्श्व के शिष्य कालासवेसियपुत्त, तुंगिया नगरी के श्रावक आदि प्रकरण पठनीय हैं। गणित की दृष्टि से पाश्र्वापत्यीय गांगेय अनगार के प्रश्नोत्तर बहुत मूल्यवान् हैं।'
१२
"भगवान् महावीर के युग में अनेक धर्म-सम्प्रदाय थे । साम्प्रदायिक कट्टरता बहुत कम थी। एक धर्मसंघ के मुनि और परिव्राजक दूसरे धर्मसंघ के मुनि और परिव्राजकों के पास जाते, तत्त्वचर्चा करते और जो कुछ उपादेय लगता वह मुक्त भाव से स्वीकार करते । प्रस्तुत आगम में ऐसे अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं, जिनसे उस समय की धार्मिक उदारता का यथार्थ परिचय मिलता है । ३
"प्रस्तुत आगम भगवान् महावीर के दर्शन या तत्त्व-विद्या का प्रतिनिधि सूत्र है । इसमें महावीर का व्यक्तित्व जितना प्रस्फुटित है उतना अन्यत्र नहीं है । डॉ. वाल्टर शुब्रिंग ने प्रस्तुत आगम के सन्दर्भ में महावीर को समझने के लिए मार्मिक भाषा प्रस्तुत की है। उन्होंने लिखा है - 'महावीर एक सुव्यवस्थित (निरूपण के) पुरस्कर्ता हैं । उन्होंने अपने निरूपणों में प्रकृति में पाए जाने वाले तत्त्वों को स्थान दिया, जैसा कि वियाहपण्णत्ती के कुछ अवतरणों से स्पष्टतया परिलक्षित होता है । उदाहरणार्थ - रायगिह (राजगृह) के समीपस्थ उष्ण जलस्रोत, जहां वे स्वयं अवश्य गए होंगे, के सम्बन्ध में उनकी व्याख्या (९९४), वायु सम्बन्धी उनका सिद्धान्त (११०) तथा अग्नि एवं वायु जीवों के सामुदायिक जीवन आदि के विषय में उनकी व्याख्या । आकाश में उड़ने वाले पदार्थ की गति मन्द होती जाती है, वियाहपण्णत्ती, १७६ बी; जीवाभिगम, (३७४बी) – यह निष्कर्ष महावीर ने सम्भवतः गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के आधार पर निकाला होगा। इसी प्रकार, एक सरपट चौकड़ी भरते हुए अश्व के हृदय और यकृत के बीच उद्भूत 'कव्वडय' नामक वायु के द्वारा 'खू-खू' की आवाज की उत्पत्ति (वियाहपण्णत्ती, ४९९ बी.) को भी हम विस्मृत नहीं कर सकते। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि प्राचीन भारत के जिन मनीषियों के विषय में हमें जानकारी है उन सब में सर्वाधिक ज्ञानवान् मनीषी महावीर थे । उनको संख्या और गणित के प्रति रुचि थी तथा उनके प्रवचनों में इन विषयों का असाधारण वैशिष्ट्य झलकता है । यद्यपि बहुत
१.
२.
भगवई (भाष्य), खण्ड १, भूमिका, पृ.
१९ ।
वही,, भूमिका, पृ. १९ ।
३.
४.
वही, खण्ड १, भूमिका, पृ. २० ।
The Doctrines of the Jainas, pp. 40-41.