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'अविनाशी और संतापरिहत आत्मा को देखनेवाला-अक्षय।'
मन क्षणभंगुर है। देखा तुमने? विचार ज्यादा देर नहीं टिकता। एक विचार आया.... आया, गया। तुम रोकना भी चाहो तो भी ज्यादा देर नहीं टिकता। तुम एक विचार को थोड़ी देर रोककर देखो, तुम पाओगे नहीं टिकता। तुम लाख कोशिश करो, वह जाता। आता, जाता। विचार में गति है। विचार भागा-भागा है। विचार पागल है; ठहरता नहीं, रुकता नहीं, थिर नहीं होता। विचार क्षणभंगुर है, इसलिए विचार में क्षय है।
जहां निर्विचार है वहां अक्षयम्। वहां अक्षय की शुरुआत हुई। वहां तुम क्षण के पार गये, शाश्वत में उतरे। विचार समय की धारा है। और विचार के बाहर हुए कि कालातीत हुए इसलिए समस्त ज्ञानियों ने ध्यान को कालातीत कहा है समय के पार। समय के भीतर जो है, संसार है। और समय के पार जो है वही सत्य है।
अक्षय गतसंतापमात्मान पश्यतो गुनेः।
और जो व्यक्ति इस भीतर की अविनाशी धारा को अनुभव कर लेता है उसके सब संताप समाप्त हो जाते हैं।
फिर समझो, जितने भी जीवन के दुख हैं, सब विचार के दुख हैं। जितना भी जीवन का संताप है, सब विचार का संताप है। किसी ने गाली दी और तुम्हारे भीतर विचारों की एक तरंग उठ गई कि मेरा अपमान हो गया। अपमान हो गया, इस विचार से दुख होता है।
खलिल जिब्रान की बड़ी मीठी कथा है। एक आदमी परदेस गया-ऐसे देश, जहां उसकी भाषा कोई समझता नहीं। एक होटल के सामने खड़ा है, लोग भीतर-बाहर आ-जा रहे हैं। वह सोचने लगा, क्या है यहां? जाकर मैं भी देखू, इतने लोग आते-जाते। बड़ा महल जैसा मालूम होता। गरीब आदमी, गरीब देश से आता। वह भीतर चला गया। वहां अनेक लोग टेबल-कुर्सियों पर बैठे हैं तो वह भी बैठ गया। वह बड़ा प्रसन्न है। बड़ा शीतल है। सब सुंदर है, सुवासित है।
और तभी वेटर आया। तो उसने समझा कि मेरे स्वागत में मालिक ने अपने आदमी भेजे। वेटर ने उसे समझने की कोशिश की, कुछ समझ न सका तो जो भी सामान्य भोजन था वह ले आया। उसने भोजन किया, बहुत प्रसन्न हुआ झुक झुककर धन्यवाद देने लगा। वेटर उसको पैसे मांगे, वह धन्यवाद दे। क्योंकि भाषा तो समझ में नहीं आती। वह समझ रहा है कि मेरा स्वागत किया गया। अंततः वेटर उसे मैनेजर के पास ले गया। मैनेजर भी नाराज होने लगा लेकिन वह समझ रहा है कि मुझ परदेसी का इतना सम्मान किया जा रहा है। फिर उसे भेजा गया अदालत में। वह यही समझा कि सम्राट के पास भेजा जा रहा है।
अदालत बड़ी थी और सम्राट जैसा ही लगता था मजिस्ट्रेट। तो वह बड़ा झुक रहा। मजिस्ट्रेट उससे बहुत पूछता है कि तूने भोजन लिया तो पैसे क्यों नहीं चुकाये? मगर उसकी कुछ समझ में आता नहीं। वह भाषा समझता नहीं। वह जो कहता है, मजिस्ट्रेट नहीं समझ पाता।
आखिर मजिस्ट्रेट ने कहा कि या तो यह आदमी पक्का धूर्त है, कि समझना नहीं चाहता; और