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से सध जाएगा, जिस दिन एक संवाद होगा तुम्हारे और अस्तित्व के बीच, उसी दिन तुम जानोगे परमात्मा क्या है। तुम भी परमात्मा हो और शेष सब भी परमात्मा है। इस नशे की तरफ चलो। इस प्रेम के सागर में डुबकी लगाओ।
यारो खता मुआफ मेरी मैं नशे में हूं
सागर में मय है मय में नशा मैं नशे में हूं भक्त तो एक नशे में जीता है। परमात्मा नशा है। पंडित के लिए परमात्मा एक सिद्धात है, बकवास-कोरी बकवास। आस्तिक और नास्तिक के चक्कर में मत पड़ना कि परमात्मा है या नहीं। यह व्यर्थ के लोगों को छोड़ दो, जिनके पास कुछ और करने को नहीं। वे होने न होने का विवाद करते रहें, अनुमान लगाते रहें। अगर तुम्हारे जीवन का ठीक-ठीक सदुपयोग तुम्हें कर लेना है, तो तुम प्रेम में उतरो। अगर तुम पाओ कि प्रेम में उतरना कठिन है, तो ध्यान में उतरो। ध्यान भी एक दूसरा मार्ग है उसी तरफ आने का। जो प्रेम करने में अपने को असमर्थ पाते हैं, उनके लिए ध्यान मार्ग है। जो प्रेम में अपने को समर्थ पाएं, उन्हें फिर किसी चिंता में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है।
चौथा प्रश्न :
मृत्यु का बड़ा भय है। क्या इससे छूटने का कोई उपाय है?
मत्यु तो उसी दिन हो गयी जिस दिन तुम जन्मे। अब छूटने का कोई उपाय नहीं। जिस दिन पैदा हुए उसी दिन मरना शुरू हो गया। अब एक कदम उठा लिया, अब दूसरा तो उठाना ही पड़ेगा। जैसे कि प्रत्यंचा से तीर निकल गया तो अब लौटाने का क्या उपाय है! जन्म हो गया, तो अब मौत से बचने का कोई उपाय नहीं।
जिस दिन तुम्हारी यह बात समझ में आ जाएगी कि मौत तो होनी ही है, सुनिश्चित होनी है-और सब अनिश्चित है, मौत ही निश्चित है -उसी दिन भय समाप्त हो जाएगा। जो होना ही है, उसका क्या भय! जो होकर ही रहनी है, उसका क्या भय! जिसको टाला ही नहीं जा सकता, उसका क्या भय! जिसको अन्यथा किया ही नहीं जा सकता, उसका क्या भय!
आशंका है तुम्हें जिस दुर्घटना की घट चुकी है वह पहले ही भीतर केवल आएगा तैरकर