Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 428
________________ दो घंटे बाद तुम वही न कह सकोगे जो कहा गया है। ही, गाली तुम बीस साल बाद भी वैसी की वैसी दोहरा दोगे, उसमें तुम्हारी कुशलता बड़ी है। फिर तुम जो संभालते हो, उसी से तुम्हारा जन्म होता है, वहीं तुम बनते हो। तो अगर जीवन के अंत में तुम कुरूप हो जाते हो, जीवन के अंत में अगर तुम बेढंगे हो जाते हो, व्यर्थ हो जाते हो, तो कुछ आश्चर्य तो नहीं है। मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन ने शादी की। तो उसको बच्चा नहीं होता था। तो डाक्टरों ने कहा कि आपरेशन करवा लें और बंदर की ग्रंथि लगानी पड़ेगी। तो मुल्ला ने कहा, कुछ भी हो, बच्चा होना चाहिए। बंदर की ग्रंथि लगवा ली। फिर बड़ा खुश हुआ और बड़ी मिठाइयां बांटी क्योंकि पत्नी गर्भवती हो गयी। और बड़े बैडंबाजे बजवाए। फिर नौ महीने भी पूरे हो गये। फिर पत्नी अस्पताल में भर्ती हुई। मुल्ला दरवाजे पर खड़ा आतुरता से प्रतीक्षा कर रहा है, उसका दिल धड़क रहा है। डाक्टर बाहर आया, तो उसने पूछा कि डाक्टर साहब, लड़का हुआ कि लड़की? उसने कहा, भई, ठहरो जरा! जो भी हुआ है छलांग मार कर सीलिंग फैन पर चढ़ गया है। उतरे तो पता लगाएं कि लड़का है कि लड़की। अब बंदर की ग्रंथि लगवाओगे, तो तुम और ज्यादा आशा कर भी नहीं सकते! तुम्हारे जीवन में अगर सिर्फ रोग ही रोग हाथ में आता है और तुम्हारे जीवन में अगर दुर्गंध ही दुर्गंध मिलती है और दुख ही दुख मिलता है तो कुछ आश्चर्य नहीं है, सीधा-साधा गणित है। तुम गलत बीजों को इकट्ठा करते हो। तुम घास-पात तो इकट्ठा कर लेते हो, फूलों को नष्ट कर देते हो। जनक ने फूलों को संभाल लिया। बड़ी अपूर्व सुगंध पैदा हुई उसी सुगंध के आज अंतिम सूत्र हैं। पहला सूत्र क्व प्रमाता प्रमाणं वा क्व प्रमेयं क्व च प्रमा। क्व किंचित् क्व न किचिदवा सर्वदा विमलस्य मे।। 'सर्वदा विमलरूप मुझको कहां प्रमाता है और कहां प्रमाण है? कहां प्रमेय है और कहां प्रमा है? कहां किंचित है और कहां अकिचित है?' प्रमाता का अर्थ होता है-ज्ञाता प्रमाण का अर्थ होता है -ज्ञान के साधन, जिनसे ज्ञान उत्पन्न होता, प्रमेय का अर्थ होता है जो जाना जाए, ज्ञेय, प्रमा का अर्थ होता है -ज्ञान। जनक कह रहे हैं कि अब न तो मुझे कुछ ज्ञान जैसा है, न मेरे भीतर ज्ञाता जैसा कुछ बचा, न कुछ ज्ञेय शेष रहा, न ज्ञान के कुछ साधन बचे। ये सारे भेद तो अज्ञान के हैं। अब तुम समझना, यह बड़ी क्रांतिकारी बात है। अगर तुम पंडितों से पूछो तो वे कहेंगे, ये भेद ज्ञान के हैं। प्रमाता, प्रमाण, प्रमेय, प्रमा। प्रमा का अर्थ होता है-ज्ञान। प्रामाणिक ज्ञान का नाम प्रमा। जिससे प्रमा सिद्ध हो, वह प्रमाण। जिसके ऊपर सिद्ध हो, वह प्रमाता। जिसके संबंध में सिद्ध हो, वह प्रमेय। यह तो ज्ञान का विभाजन है, इसको तो पूरा-पूरा इपेस्टोमोलाजी, ज्ञानमीमांसा कहते हैं। और जनक कह रहे हैं, अब यह कुछ भी नहीं बचे। न कोई जानने वाला है, न कुछ जाना जानेवाला। दो तो गये, तो अब कैसा सब्जेक्ट, कैसा आब्जेक्ट! अब कैसा ज्ञाता और कैसा ज्ञेय। अब कौन द्रष्टा और कैसा दर्शन! दो तो रहे नहीं। यह तो दो हों तो

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