Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 443
________________ दैदीप्य प्रतिभा थी। उसके चारों तरफ एक प्रकाश था, एक अपूर्व शांति थी। उसके पास एक ठंडी, शीतल लहर थी, जो छूती। पंडितों तक को एहसास होता, क्योंकि पंडित तो सबसे अंधे लोग हैं इस पृथ्वी पर। उनको भी लगता कि कुछ है, कोई चुंबक। दूर-दूर काशी से आते, पर फिर उदास लौटते, क्योंकि वह ज्यादा कुछ बोलता न। लेकिन एक दिन ऐसा हुआ, एक युवक आया और बजाय इसके कि वह कुछ पूछे उसने के के हाथ से डंडा छीन लिया। उसकी आंखों में कुतूहल भी नहीं था, उसके चेहरे पर जिज्ञासा भी नहीं थी, उसके सिर पर पांडित्य का बोझ भी नहीं था, वह बड़ा भोला-भाला युवक था, बड़ा शात। एक गहरी मुमुक्षा थी। जीवन को दाव पर लगाने की आकांक्षा थी। खोजी था। उसने डंडा हाथ में ले लिया और उसने भी मौन का व्रत लिया था, वह मौन ही रहता था, उसने डंडे से रेत पर लिखा-आपकी ज्योति मेरे अंधेरे को कैसे दूर करेगी? उसने रेत पर लिखा। संत ने उत्तर में रेत पर लिखा-कैसा अंधेरा, अंधेरा है कहां? क्या तुम अंधेरे में खोए हो? यह पहला मौका था कि संत ने इतनी बात लिखी। भीड़ इकट्ठी हो गयी पृ गांव भर में खबर पहुंच गयी कि कोई आदमी आया है जिसने सोए संत को जगा लिया मालूम होता है। उसने कुछ लिखा है जैसा कभी नहीं लिखा था। उसने लिखा है, कैसा अंधेरा? अंधेरा है कहां? क्या तुम अंधेरे में खोए हो? वह युवक थोड़ा ठिठका और उसने फिर लिखा-क्या खो जाना वस्तुत: खो जाना है? क्या खो जाना मार्ग से वस्तुत: स्मृत हो जाना है? संत ने युवक की आंखों में झांका, अनंत प्रेम और करुणा और आशीष से और फिर रेत पर लिखा-नहीं, खो जाना भी खो जाना नहीं, बस विस्मृतिमात्र। याद भर खो गयी है और कुछ खो नहीं गया है। खो जाना भी खो जाना नहीं है, बस विस्मृति। अब तक तो दर्शकों की बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी थी। यह उत्तर पढ़ कर भीड़ में हंसी का फव्वारा फूट पड़ा। और संत ने जो लिखा था उसे तब्धण पोंछ डाला और पुन: लिखा-कौन सी इच्छा तुम्हें यहां ले आयी है, युवक? डंडा सतत हाथ बदलता रहा। युवक ने लिखा-इच्छा? इच्छाएं? नहीं मेरी कोई इच्छा शेष नहीं है। ऐसा सुनते ही संत उठकर खड़ा हो गया, दायां पैर उठाकर भूमि पर तीन बार थाप दी, फिर आंखें कंद करके सांस को रोककर मूर्तिवत खड़ा हो गया। सन्नाटा छा गया। भीड़ भी ग्रतावत हो गयी, युवक भी कुछ समझा नहीं, इस पर युवक भूल गया कि उसने मौन का व्रत लिया है और बोल उठा. यह आपने क्या किया और क्यों किया? संत हंसा' और उसने पुन: रेत पर लिखा-कुतूहल इच्छा का ही एक रूप है। इस पर युवक चाख उठा मैंने सुना है कि एक ऐसा महामंत्र है जिसके उच्चार मात्र से व्यक्ति विश्व के साथ एक हो जाता है, ब्रह्म के साथ एक हो जाता है, मैं उसी मंत्र की खोज में आया हूं। ज्यादा मुझे कहना नहीं। और मुझे पता है कि वह मंत्र आप है-मैं देख रहा हूं, उसकी ध्वनि मुझे सुनायी पड़ रही है। संत ने शीघ्रता से लिखा-तत्वमसि। वह तू ही है। वह मंत्र तू ही है। और क्या तू एक क्षण को भी ब्रह्म से भिन्न हुआ है? और तब उस के संत ने अचानक डंडा उठाया और उस युवक के सिर पर दे मारा। युवक की आंखों के सामने तारे घूम गये। लेकिन वह किसी अनिर्वचनीय समाधि में भी

Loading...

Page Navigation
1 ... 441 442 443 444