________________ इब गया। उसकी आंखों से अविरल आनंद के आंसू बहने लगे। पल पर पल बीते, घडियां बीती, दिन बीता, दिन बीते, वह युवक अपूर्व आनंद में डूबा रहा तो डूबा ही रहा। और तब तीसरे दिन के संत ने न-मालूम किस अनिर्वचनीय क्षण में भूल गया कि मौन का व्रत लिया है, मौन ट गया के संत का और उसने कहा. सो अंततः तुम घर वापिस आ ही गये! सो अंततः तुम घर वापिस आ ही गये? पर युवक बोला नहीं और बिना बोले ही अनंत कृतज्ञता से के की आंखों में देखता रहा और तब उसने डंडा उठाकर रेत पर लिखा –केवल स्मृति लौट आयी, कौन गया था, कौन लौटा? सिर्फ स्मृति लौट आयी। बस इतना ही सारसूत्र है अष्टावक्र और जनक के इस परम संवाद का, इतना ही-स्मृति लौट आयी। वही है मरकजे –काबा वही है राहे -बुतखाना जहां दीवाने दो मिलकर सनम की बात करते हैं इन दो दीवानों की बात तुमने सुनी। प्रभु करे तुम्हें भी दीवाना बनाये तुम्हारे जीवन में भी वह अपूर्व अमृत बरसे। और देर जरा भी नहीं है, बस स्मृति की बात है। हरि -ओम तत्सत्। आज इतना ही। (अष्टावक्र: गीता-समाप्त)