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प्रमा। ज्ञान गया। जब ज्ञान चला जाए, तभी ज्ञान है।
अब समझो।
साधारण हालत तो ऐसी है कि ज्ञान तो बिलकुल नहीं, लेकिन दावा हर एक को है कि हम जानते हैं। तुम्हें ऐसा आदमी मिलेगा जो कहे कि मैं नहीं जानता? मूढ़ से मूढ़ भी यही कहेगा, मैं जानता हूं। जानने का दावा कौन छोड़ता है! तुम जब नहीं भी जानते तब भी तुम जानने का दावा करते हो। कोई तुमसे पूछता है, ईश्वर है? तुम्हें जरा-सा भी पता नहीं है, तुम्हें जरा भी खबर नहीं है, तुम कहते हो-हा, है। तुम मरने-मारने को तैयार हो जाते हो, उस पर जिसका तुम्हें कुछ भी पता नहीं है। तुमने कभी सोचा तुम क्या कह रहे हो?
मेरे गांव में एक वैदयराज थे। उनका मेरे घर से लगांव था बहुत, और अक्सर मैं उनके वहां जाता। उनको रस था उपनिषद, वेद पढ़ने में। और वे सदा शिक्षा देते रहते कि सच बोलो, सच बोलो। मैंने उनसे पूछा एक दिन, ईश्वर है? मैं उनसे दादा कहता, मैंने कहा-दादा, ईश्वर है? उन्होंने कहा, है। मैंने कहा, सच बोल रहे हैं? वे थोड़े घबडाए। ईमानदार आदमी थे। छोटे बच्चे को भी धोखा नहीं दे सके। उन्होंने कहा, तो फिर मैं जरा सोचूंगा। मैंने कहा, सोचना क्या है? या तो आपको पता है, या आपको पता नहीं है। इसमें सोचना क्या है? पता हो तो कह दें कि पता है, मैं मान लूंगा। पता न हो तो कह दें कि पता नहीं है। तो उन्होंने कहा, झूठ तुझसे नहीं बोल सकूँगा मुझे पता तो नहीं है। तो फिर मैंने कहा, अब दो में से कुछ एक तय कर लें, या तो यह सच बोलना चाहिए यह बात आप बंद कर दें। आप निरंतर उपदेश दे रहे हैं कि सच बोलना चाहिए। और या फिर सच बोलना शुरू करें।
जब मैं चलने लगा, उन्होंने कहा, सुन! जो मैंने तुझसे कहा, किसी और को मत बताना। क्योंकि उनकी सारी प्रतिष्ठा इस पर थी। गांव भर उनको मानता, आदर देता कि वे जानी हैं। किसी और से मत कहना! मैंने कहा, यह किस प्रकार का सच हुआ? अगर आपको पता नहीं, तो कह दें, कम-से-कम सच ही के तो पीछे चलें। सच के पीछे चलनेवाला शायद कभी परमात्मा तक पहुंच जाए। लेकिन झूठ परमात्मा के संबंध में जो बोल रहा है, वह तो कैसे कहीं पहुंचेगा कम-से-कम इतनी सचाई तो हो।
लेकिन बहुत कठिन है। अगर तुमसे कोई पूछे तो उत्तर दिये बिना नहीं रहा जाता। एक बड़ी उत्तेजना उठती है कि उत्तर देना ही है, क्योंकि नहीं तो लोग समझेंगे कि तुम जानते ही नहीं हो।
और ध्यान रखना, अज्ञानी दावा करता है ज्ञान का और ज्ञानी कोई दावा नहीं करता। अज्ञानी ही दावा करता है। ज्ञानी का दावा नहीं है, ज्ञानी दावेदार नहीं है।
__ इसलिए बुद्ध चुप रह गये। जब लोगों ने पूछा, ईश्वर है? तो बुद्ध चुप रह गये| हिंदुस्तान के पंडितों ने यह घोषणा की कि बुद्ध को पता नहीं है, इसलिए चुप हैं। हिंदुस्तान के पंडितों ने बुद्ध के धर्म को उखाड़कर फेंक दिया, ब्राह्मणों ने टिकने न दिया। क्योंकि उनके लिए एक बड़ी सहूलियत की बात मिल गयी। लेकिन उनको पढ़ना चाहिए अष्टावक्र को, सुनना चाहिए जनक के वचन| उन्हें अपने उपनिषदों में ही खोज करनी चाहिए। बुद्ध जो व्यवहार कर रहे थे चुप रहकर, वह शुद्धतम उपनिषद