Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 436
________________ में लगे हैं। बुरे आदमी के सहारे ही भला आदमी जी रहा है। दुर्जन के सहारे ही सज्जन की इज्जत है। वे जो लोग कारागृह में बंद हैं उनके कारण तुम कारागृह के बाहर हो । नहीं तो तुम बाहर कहां? वे जो लोग पागल हैं, उनके कारण तुम स्वस्थ हो। जो के हैं, उनके कारण तुम जवान हो। अन्यथा तुम न रहोगे। द्वैत जब जाता है तो पूरा चला जाता है। तो जनक की बात बड़ी महत्वपूर्ण है। जनक कहते हैं, ऐसा नहीं है कि जब व्यवहार–सत्य चला जाएगा तो परमार्थ – सत्य होगा। व्यवहार गया तो परमार्थ भी गया, संसार गया तो सत्य भी गया । फिर जो शेष रह जाता है, उसके लिए कोई शब्द नहीं है। 'सर्वदा विमल रूप मुझको कहां माया है और कहां संसार है, कहां प्रीति है, कहां विरति है, कहां जीव है, कहां ब्रह्म है?' सुनते हैं यह अपूर्व घोषणा कि न आत्मा न ब्रह्म, कहां जीवन कहां ब्रह्म? क्व माया क्व च संसारः क्व प्रीतिर्विरति क्व च वा । क्व जीवः क्व च तद्ब्रह्म सर्वदा विमलस्य मे ।। 'मुझ सर्वांगशुद्ध निर्मल हो गये में अब कहां आत्मा है, कहां परमात्मा है, कहां जीव, कहां ब्रह्म?' इस संबंध में एक बात और खयाल में ले लेना । गुरु-शिष्य के निषेध के पहले जनक परमात्मा और आत्मा का निषेध कर देते हैं। अभी गुरु-शिष्य का निषेध नहीं किया, वह आगे के सूत्र में - करीब-करीब अंतिम चरण में - गुरु-शिष्य का निषेध होता है। तुमने कबीर का वचन सुना है, मैंने बहुत बार उसकी बात की है- गुरु गोविंद दोई खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय। गुरु गोविंद दोनों खड़े हैं अब, किसके चरण छुऊं? और कबीर कहते हैं कि गुरु, तुम्हारी बलिहारी कि तुमने इशारा कर दिया गोविंद की तरफा बहुतों ने सोचा है कि इसका अर्थ यह हुआ कि कबीर ने गोविंद के पैर छुए बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय। बहुतों ने इसका यही अर्थ किया है कि गुरु ने कह दिया कि मेरे नहीं, गोविंद के पैर छुओ। मैं तुमसे कहता हूं, यहां तक तो बात ठीक है कि गुरु ने कहा, मेरे नहीं गोविंद के पैर छुओ । मगर छुए कबीर ने गुरु के ही पैर, क्योंकि बलिहारी शब्द पर ध्यान दो। वे यह कह रहे हैं कि अब तो कैसे गोविंद के पैर छुओ। अब तो तुम्हारे पैर छुऊंगा। क्योंकि - बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय। तुमने गोविंद की तरफ इशारा कर दिया, इसलिए धन्यवाद तुम्हीं को देना होगा। तुमने गोविंद की तरफ हाथ उठा दिया, इसलिए धन्यवाद तुम्हीं को देना पडेगा। तुमने गोविंद तक पहुंचा दिया, इसलिए धन्यवाद तुम्हीं को देना होगा। मेरी दृष्टि में कबीर ने गुरु के पैर छुए। इसलिए गुरु के पैर छुए कि गुरु ने गोविंद को बता दिया। बलिहारी! इस सूत्र के साथ आज तुम यह भी समझ लो कि जनक निषेध करते चल रहे हैं। सारी चीजें निषिद्ध होती चली जा रही हैं। परम अद्वैत की घोषणा हो रही है। जहां एक और एक और बिलकुल एक बचेगा—एकरसता बचेगी - वहा इसके पहले कि वह गुरु-शिष्य का निषेध करें, वह आत्म और परमात्मा का निषेध कर देते हैं। साधारणतः तर्कयुक्त यह होता कि पहले गुरु-शिष्य का निषेध

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