Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 426
________________ अंकुर प्रेयसी में जाता है। फिर प्रेयसी नौ महीने के बाद उसी अंकुर को नये-नये जीवन, नयी-नयी महिमा से भरकर वापिस लौटाती है। प्रेमी पहचान भी न सकेगा, यह वही बीज है जो प्रेमी ने दिया वह बीज तो बडा छोटा था। और वह बीज तो कोई बहत जीवंत न था अपने- आप रहता तो घडी-दो -घडी में मर जाता। दो घंटे से ज्यादा नहीं जी सकता था। वीर्य - अणु दो घंटे से ज्यादा नहीं जी सकता। बड़ी छोटी-सी उसकी जीवन-लीला है। और बड़ी धीमी-सी ऊर्जा है, जरा-सी ऊर्जा है। जरा-सी ऊर्जा दी थी, प्रेयसी ने उसे संभाला, वह जरा-सी ऊर्जा विराट ऊर्जा बनी। एक नये बच्चे, एक नये अतिथि का आगमन हो गया। और जब प्रेमी अपने बच्चे को देखता है तो भरोसा भी नहीं कर सकता कि यह बच्चा किसी दिन मेरे ही भीतर से एक बीज के रूप में गया था। वही है, और फिर भी वही नहीं है। वही है, बहुत होकर वही है। वही है, और विराट होकर वही है। प्रेयसी ने वही का वही नहीं लौटा दिया है। एक सम्राट अपने बेटों में तय करना चाहता था, किसको राज्य का मालिक बनाऊं। तो उसने अपने बेटों को एक-एक बोरे फूलों के बीज दिये और कहा, तुम संभाल कर रखना, मैं तीर्थयात्रा को जा रहा हूं? वर्ष लगें, दो वर्ष लगें, जब लौटूंगा तब ये बीज मैं तुमसे वापिस चाहता ही संभाल कर रखना, इस पर तुम्हारा भाग्य निर्भर है। क्योंकि जो व्यक्ति इन बीजों को ठीक से, सम्यकरूपेण लौटा देगा, वही मेरे राज्य का मालिक होगा। तीनों बेटे बड़े विचार किये, बड़े हिसाब लगाये। एक बेटे ने सोचा कि कहीं खो जाएं, कहीं गुम जाएं, चोरी चले जाएं, कुछ हो जाएं, झंझट हो जाए, तो राज्य गंवा बैठेंगा। तो उसने तिजोड़ी में बीज बंद करके खूब बड़े ताले लगाकर कुंजियां संभालकर रख लीं| होशियारी तो दिखायी, लेकिन कई दफा होशियारी बड़ी मूर्खतापूर्ण हो जाती है। अब बीज तिजोडियो में बंद नहीं किये जाते। बीज सड़ गये जब तक बाप आया। जब निकाला तो वहां से बदबू निकली। बीज तो निकले नहीं, राख का ढेर निकला। और सड़ाध और बास। जो फूल बन सकते थे वह दुर्गंध बन गये, जो सुगंध बन सकते थे वह दुर्गंध बन गये। एक अर्थ में लड़के ने बचाया, लेकिन अकल न थी, समझ न थी। दूसरे लड़के ने सोचा कि यह झंझट का काम है बीजों को घर में रखना, पता नहीं कब लौटे कब न लौटे, इनको बाजार में बेच दो, पैसा संभालकर रख लो। जब बाप आएगा, बाजार से फिर बीज खरीदकर दे देंगे। यह दूसरे से थोड़ी ज्यादा बुद्धिमानी थी, लेकिन फिर भी बहुत बुद्धिमानी न थी बीज तो उसने बेच दिये, पैसे संभालकर रख लिए। पैसे संभालकर रखना सदा आसान है। इसलिए तो लोग पैसे को इतना संभालकर रखते हैं। और सब बेच देते हैं, पैसे को संभालकर रख लेते हैं। क्योंकि पैसे में सभी कुछ संचित है। जब मौका होगा, खरीद लेंगे, फिर खरीद लेंगे। तुम्हारी जेब में एक रुपया पड़ा है, बहुत सी चीजें पड़ी हैं। अभी चाहो तो एक आदमी आकर सिर पर मालिश करे, वह भी तुम्हारी जेब में पड़ा है। अभी चाहो तो एक गिलास दूध आ जाए, वह भी तुम्हारी जेब में पड़ा है। हजार काम हो सकते हैं एक रुपये से। सब विकल्प मौजूद हैं। अब इतनी चीजें अगर तुम जेब में रखकर चलो तो बड़ी मुश्किल होगी कि एक चंपीवाले को भी जेब में रख हैं,

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