Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 425
________________ शिष्य का इतना ही अर्थ है कि तुम प्रमाण हो। तुम्हारी मौजूदगी प्रमाण है। तुम्हें हो गया, आ गया । तुमने कहा, बात हो गयी । हम पूरी तरह सुन लेते, हम रत्ती भर इसमें इधर-उधर डावाडोल न होंगे। लेकिन कुछ कहा जाता है, कुछ तुम सुन लेते हो। तुम जो सुनना चाहते हो, वही सुन लेते हो। ऐसा हुआ सड़क दुर्घटना में चंदूलाल को घातक चोटें आयीं। एक कार वाले ने उन्हें अपनी कार में डाला और पास ही के एक निर्जन से स्थान पर छोड़कर आगे बढ़ गया। एक तो चोटें खाया हुआ आदमी, जब इस कार वाले ने उन्हें अपनी कार में डाला, तो वह थोड़ी हिम्मत बढ़ी उसकी और जब स्वात स्थान में इन्हें छोड़ कर आगे बढ़ गया तो चंदूलाल भी बहुत चकित हुआ कि मामला है! बोलने तक की हिम्मत न थी, जीवन-ऊर्जा बिलकुल क्षीण हो गयी, खून बहुत बह गया। छानबीन के दौरान अदालत में उस आदमी को भी बुलाया गया, वह आदमी था मुल्ला नसरुद्दीन। मजिस्ट्रेट ने उससे पूछा कि बड़े मियां, जब तुम्हारे पास इतना समय नहीं था कि घायल को अस्पताल तक ले जा सकते, तो उसे एक निर्जन स्थान तक लाकर छोड़ने का क्या आशय था? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, हुजूर वजह यह थी कि घटनास्थल के सामने लगे बोर्ड पर मेरी नजर पड़ी तो उस पर लिखा था, मौत को सड़क से दूर रखिये। तो मैंने कहा, जो मुझसे बन सके वह करना चाहिए। यह आ मरने को था और सड़क पर मौत होती, यह सोचकर मैंने मौत को सड़क से दूर रख दिया। स्वात स्थान पर छोड़कर मैं अपने घर गया। घंटा भर लगा हुजूर सड़कों पर ऐसे - ऐसे बोर्ड लगे हैं! आदमी वही पढ़ लेता है जो पढ़ना चाहता है। आदमी अपने को पढ़ लेता है, आदमी अपने को सुन लेता है, आदमी अपनी व्याख्या निकाल लेता है। तुम जब सुन रहे हो, सुन कहां रहे हो! और हजार काम कर रहे हो । मन में न मालूम कितने विचार चल रहे हैं। उन विचारों की तरंगों को पार करके मैं तुमसे जो कह रहा वह पहुंच पाएगा? तुम पहुंचने नहीं देते तुम हजार-हजार बीच में पर्दे खड़े किये हो, उनसे छन-छन कर जब किसी तरह बात पहुंचती है तो इतनी बदल जाती है कि किसी काम की नहीं रह जाती। उससे कोई क्रांति नहीं घटती। दवा इतने जल में मिल जाती है कि उसका सारा असर खो जाता है। सुनने का अर्थ है- जब अष्टावक्र कहते हैं, श्रवणमात्रेण, तो उनका अर्थ है-ऐसे सुनो जैसे तुम्हारे भीतर एक भी पर्दा नहीं है, हृदय को खोलकर सुनो। जैसा प्यासा पानी को पीता है ऐसा गुरु को पी जाओ। तो घटना घटती है। और तब जनक जैसी घटना घट जाती है। आज जनक का अंतिम सूत्र है । इस अंतिम सूत्र में जनक आखिरी ऊंचाई लेते हैं। शिष्य जिस आखिरी ऊंचाई तक पहुंच सकता है, जहां पहुंचकर शिष्य शिष्य नहीं रह जाता और गुरु में लीन हो जाता है। जो भी वह कह रहे हैं, वह वही है जो अष्टावक्र ने कहा था, फिर भी पुनरुक्ति नहीं है। तो वही रहे हैं जो अष्टावक्र ने कहा था, लेकिन अपने प्राणों में उसे पुनरुज्जीवन दिया है। उन शब्दों में अपने प्राण डाल दिये हैं। वह जो गुरु का है, वह गुरु को ही दे रहे हैं, कुछ नया नहीं है, लेकिन मुर्दा नहीं दे रहे हैं, उसे जीवंत करके दे रहे हैं। ऐसा ही समझो कि एक प्रेमी अपनी प्रेयसी को गर्भिष्ट कर देता है। तो प्रेमी से नवजीवन का

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