________________
मता हा
दूध की बोतल भी इधर ही, बहुत मुश्किल हो जाएगी चल न पाओगे, जिंदगी दूभर हो जाएगी। एक रुपया पड़ा है, उसमें कई चीजें पड़ी हैं, जब जैसी जरूरत हुई उपयोग कर लिया। चौपाटी पहुंच गये चंपी करवा ली। कि दूध पी लिया। कि गरीब को दान दे दिया। कुछ भी हो सकता है। रुपये में हजार विकल्प की संभावना है। रुपये में बड़ी स्वतंत्रता है।
तो उसने सोचा कि बीज कभी भी खरीद लेंगे, बीज की क्या दिक्कत है! रुपये संभालकर रख लिए। लेकिन बाप जब आया तो वह भागा बाजार। बाप ने कहा कि नहीं, जो मैंने दिये थे वही वापिस चाहिए। यह तो शर्त ही थी कि जो दिये थे वही वापिस। यह तो बात ही न थी कि तू इनको बेचेगा खरीदेगा। यह तो तूने मेरी अमानत को सुरक्षित न रखा।
तीसरे बेटे ने सोचा कि बीज कोई वस्तु थोड़े ही है, बीज तो संभावना है।
समझो। बीज कोई वस्तु नहीं है, बीज तो एक प्रक्रिया है। बीज तो एक संभावना है, फूल होने की एक यात्रा है। बीज तो एक तीर्थयात्रा है, एक प्रॉसेस। बीज कोई चीज नहीं है। कंकड़ एक चीज है, क्योंकि कंकड़ न बढ़ता, न बड़ा होता, न कुछ हो सकता, जो होना था हो चुका है। कंकड़ मुर्दा है, बीज जीवंत है। जीवन की प्रक्रिया है। उसने सोचा, जीवन की प्रक्रियाओं को तिजोडियों में बंद नहीं किया जाता, अन्यथा वे मर जाती हैं। और जीवनों को बेचा नहीं जाता। बेचने में तो बड़ी निर्दयता है। तो क्या किया जाए?
तो उसने जाकर बगीचे में बीज बो दिये। जब बाप तीन साल बाद लौटा, तो एक बोरे की बात हजारों बोरे बीज थे! और जब बाप को ले जाकर उसने दिखाया और उसने कहा कि ये रहे आपके बीज, तो बाप ने कहा, मैं खुश हूं। क्योंकि अगर बीज दिये जाएं तो उसका अर्थ ही यह है कि उनको बढाकर लौटाना। बीज का अर्थ ही यह है कि बड़ा करके लौटाना। तू मेरे राज्य का मालिक है। तेरे हाथ में राज्य दूंगा तो बढ़ेगा, फैलेगा। पहले के हाथ में तिजोड़ी में बंद होगा, मर जाएगा। दूसरे के हाथ में बिक जाएगा। तेरे हाथ में बढ़ेगा, समृद्ध होगा, विस्तीर्ण होगा, बड़ा होगा। तू मालिक| तू प्रक्रिया को समझा।
अष्टावक्र ने जो बीज दिये हैं जनक को, जनक ने उनको जन्म दे दिया। बीज अनूठे थे और अनूठा उनसे जन्म हुआ
खयाल करना, तुम बड़े अजीब हो, तुम कभी व्यर्थ के बीजों को तो खूब संभाल लेते हो और सार्थक बीजों को छोड़ते चले जाते हो। एक आदमी राह से जा रहा है और गाली दे देता है, तुम गाली को संभाल कर रख लेते हो, जैसे कोई महामंत्र है। इसको तुम वर्षों संभालकर रखोगे। इसको बीस साल बीत जाएंगे तो भी तुम ताजा रखोगे। हरी रहेगी यह बात। बीस साल के बाद भी यह आदमी दिखेगा तो गाली फिर जिंदा हो जाएगी। फिर मरने -मारने का मन होने लगेगा। घाव को तुम भरने न दोगे, उधेड़ते रहोगे। घाव में मवाद पड़ती ही रहेगी। घाव सड़ता रहेगा। नासूर बनता रहेगा।
गाली को तो ऐसा संभालकर रख लेते हो, लेकिन अगर अष्टावक्र जैसा कोई वचन देने वाला मिले, पहले तो तुम सुनते ही नहीं, सुन भी लो तो भूल जाते हो| बीस साल की बात पूछ रहे हो,