Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 399
________________ प्रेम नहीं है, लेकिन कुछ झलक उसमें उस प्रेम की भी है जिसकी साक्षी की स्थिति में अंतिम रूप से प्रस्फुटना होती है। जो विकसित होता है आखिरी क्षण में उसकी कुछ झलक तुम्हारे प्रेम में भी है। माना कि मिट्टी और कमल में क्या जोड़ है, लेकिन जब कमल खिलता है तो मिट्टी के रस से ही खिलता है। ऐसे कमल और मिट्टी को, दोनों को रखकर देखो तो कुछ भी समझ में नहीं आता कि इनमें क्या संबंध हो सकता है! लेकिन सब कमल मिट्टी से ही खिलते हैं, बिना मिट्टी के न खिल सकेंगे। फिर भी मिट्टी कमल नहीं है। और ध्यान रहे कि मिट्टी में कमल छिपा पड़ा है। प्रच्छन्न है। गुप्त है। प्रगट होगा। तुम जिसे कामवासना कहते हो, उसमें परमात्मा का कमल छिपा पड़ा है। मिट्टी है, कीचड़ है तुम्हारी कामवासना, बिलकुल कीचड़ है, बदबू उठ रही उससे, लेकिन मैं जानता हूं कि उसी से कमल भी खिलेगा। तो अष्टावक्र ने एक भूल से बचाना चाहा कि कहीं तुम कीचड़ को ही कमल न समझ कर पूजा करने लगो-बड़ी उनकी अनुकंपा थी - लेकिन तब कुछ लोग पैदा हुए उन्होंने कहा कि कीचड़ तो कल है ही नहीं इसलिए कीचड़ से छुटकारा कर लो। कीचड़ से छुटकारा कर लिया, कमल नहीं खिला, क्योंकि कीचड़ के बिना कमल खिलता नहीं। वह दूसरी गलती हो गयी जो बड़ी गलती है। पहली गलती से ज्यादा बड़ी गलती है। क्योंकि पहली गलती वाला तो शायद कभी न कभी कमल तक पहुंच जाता - कीचड़ तो थी, संभावना तो थी, कीचड़ में छिपा हुआ कमल का रूप तो था; प्रगट नहीं था, अप्रगट था, धुंधला - धुंधला था, था तो खोज लेता, टटोल लेता-लेकिन जिस व्यक्ति ने प्रेम की धारा सुखा दी, कीचड़ से छुटकारा पा लिया, उसके जीवन में तो कमल की कोई संभावना न रही। पहले के जीवन में संभावना थी, दूसरे के जीवन में संभावना न रही। साक्षी का फल प्रेम है। मैं तुम्हें दोनों को साथ - साथ देना चाहता हूं। मैं तुम्हें याद दिलाना चाहता हूं कि तुम्हारा प्रेम प्रेम नहीं है, और अभी प्रेम को यात्रा लेनी है। तुम्हारे प्रेम को अभी और विकास लेना है, तुम्हारे प्रेम से अभी और और फूल खिलने हैं, तुम अपने प्रेम पर रुक मत जाना। लेकिन तुमसे मैं यह भी कहना चाहता हूं कि तुम्हारे प्रेम को काट भी मत डालना क्योंकि वह जो होनेवाला है, इसमें ही छिपा है। वह वृक्ष इसी बीज में छिपा है। बीज में वृक्ष के दर्शन किसको होते हैं? तुम्हें भी नहीं होते अपने प्रेम में परमात्मा के दर्शन। लेकिन जब तुम्हें परमात्मा के दर्शन होंगे, तब तुम पहचान लोगे कि अरे, जिसको मैं प्रेम कहता था उसमें भी धुंधली - धुंधली छाया यही थी। जब तुमने अपनी पत्नी को प्रेम किया है, या अपने बेटे को, या अपने पति को, या अपने मित्र को, तब तुमने एक धुंधली छाया परमात्मा की देखी। बड़ी धुंधली छाया, बहुत धुंआ है और बीच की ज्योति दिखायी नहीं पड़ती, खोयी खोयी सी है। लेकिन कितना ही धुंआ हों - लेकिन पुराने तर्कशास्त्र के ग्रंथ कहते हैं, जहां जहां धुंआ वहां-वहां अता- तो ही धुंआ हो, धुएं से एक तो पक्की बात होती है सबूत कि आग होगी। बिना आग के धुंआ तो नहीं हो सकता। यह तुमने खयाल किया, आग हो सकती है बिना धुएं के - इतना प्रज्वलित अंगारा हो सकता है कि धुंआ न हों-अता हो सकती है बिना धुएं के धुंआ नहीं हो सकता बिना आग के। तो जहां जहां

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