Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 401
________________ बातों को साथ-साथ कहना होगा। किसी ने दिन की बात की थी, किसी ने रात की बात की थी, मैं दिन और रात की इकट्ठी बात कर रहा हूं। क्योंकि मेरे लिए दोनों संयुक्त हैं। किसी ने नाचने की बात की थी, किसी ने शात बैठ जाने की बात की थी, मैं कहता न हो और तुम्हारी शांति क्या खाक अगर नाच न सके। किसी , मैं तुमसे कहता हूं, संसार में रहते संन्यासी हो जाना और संन्यासी होकर घबड़ाना मत, संन्यासी क्या डरेगा संसार से! संसार में रहना और संसार में रहना भी मत, यही मेरी संन्यासी की परिभाषा है। मैं सारे विरोधों को जोड़ देना चाहता हूं। तुम्हारा नाच ही क्या अगर उसमें शांति ने संसार की बात की, किसी ने संन्यास फिर, तुम्हारे जीवन की जो असली ऊर्जा है, वह ऊर्जा प्रेम की है। जैसे कोई दीये को जलाता है, तो ज्योति। ज्योति तो साक्षी की है। लेकिन तेल भरते हैं न, तेल को इसीलिए हम स्नेह कहते हैं - स्नेह यानी प्रेम | कहते हैं, दीया जलता है, लेकिन दीये को कभी जलता देखा है? जलता प्रेम है, जलता तेल है, जलता स्नेह है। कहते तो हो दीया जलता है, लेकिन दीया कभी जलता है! जलता तो प्रेम है। प्रेम ही जलकर ज्योति बनता है। प्रेम की ऊर्जा ही साक्षी बनती है। प्रेम ही जब प्रज्वलित हो जाता है तो साक्षी की तरह प्रगट होता है। दीप नहीं, स्नेह सदा जलता है मिट्टी के सीस साज सौरभ आलोक छत्र गूंथ हृदय हार मध्य किरन कुसुम ज्योति पत्र वृक्ष नहीं, बीज फलता है दीप नहीं, स्नेह सदा जलता है जन्म-मरण दो डग धर नाप सकल भुवन लोक पथ का पाथेय लिये नयन द्वय हर्ष - शोक रूप नहीं, रे अरूप चलता है दीप नहीं, स्नेह सदा जलता है प्रेम की इतनी बात कहता हूं क्योंकि प्रेम ही वह ऊर्जा है जो साक्षी बनेगी। साक्षी की इतनी बात करता हूं क्योंकि साक्षी की ज्योति तुम्हारे जीवन को आलोकित करेगी तुम्हारा जीवन उस दिन परिपूर्ण होगा, समग्र होगा, जिस दिन भीतर साक्षी का दीया जलता होगा और जीवन से रस की, प्रेम की धार बहती होगी। तुम टूट न जाओ अन्यों से, प्रेम तुम्हें बांधे रहे हजार हजार संबंधों में, और तुम इतने संबंधों में न खो जाओ कि अपने से टूट जाओ, साक्षी तुम्हें जगाए रहे स्वयं की ज्योति

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