Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 412
________________ अभी चलने दो दौर ! अभी और अभी और । -कन को महका ओ माटी के गीत जीवन को दहकाओं सुमनों के अधरों को करने दो छक कर मधुपान कहीं सौरभ के ठौर ! अभी और अभी और । तन-मन को पुकार उगे रागों के छोर प्रीति कलश दुलका ओ वंशी के पोर कुंजों में छिड़ने दो भ्रमरों की धरो स्वर के सिर मौर ! अभी और अभी और ! भौंहों पर खिंचने दो रतनारे बान अभी और अभी और ! मन कहे चला जाता - अभी और, जरा और एक प्याली और पी लें, एक आलिंगन और कर लें, एक चुंबन और, थोड़ा समय है, कौन जाने जो अब तक नहीं मिला मिल जाए। ऐसे आशा के सहारे आदमी खिंचता चला जाता है। उमर खैयाम का एक गीत है, जिसमें वह कहता है मैंने पंडितों से पूछा, मौलवियों से पूछा, ज्ञानियों से पूछा, बड़े - बड़े आचार्यों से पूछा कि आदमी इतने दुख के बावजूद भी जीए कैसे जाता है? लेकिन उनमें से किसी ने कोई उत्तर न दिया । और मैं जिस द्वार से भीतर गया, उसी द्वार से बाहर आया-खाली का खाली, वैसा का वैसा । फिर घबड़ाकर मैंने एक दिन आकाश से पूछा कि हे आकाश! तूने तो सब देखा, अरबों अरबों लोगों का जीवन, अरबों- अरबों लोगों की आशाएं, सपने, उनका टूटना, उनका कब्रों में गिरना; इच्छाओं के इंद्रधनुष, उनका टूटना, धूल में रुंध जाना, तूने तो सब देखा, तू तो सब देख रहा है अनंतकाल से, तू मुझे कह दे - इतना दुख है, आदमी जीए कैसे जाता है? और आकाश ने कहा आशा के सहारे । आशा ! मनुष्य के जीवन की सारी मूर्च्छा का सूत्र है आशा अभी और थोड़ा और जरा और । - तुम कहते हो कि जीवन में दुख है। तुम्हें नहीं दिखायी पड़ा। और तुम कहते हो, यह सुख तो कभी मिला नहीं सपने में भी । माना। किसको मिला ! किसी को भी नहीं मिला, लेकिन अभी भी तुम सपना देख रहे हो कि शायद कल मिले। सपने में भी सुख नहीं मिलता, लेकिन सुख का सपना हम देखे चले जाते हैं। जब तुम्हारा सुख का भ्रम टूट जाएगा-सुख मिल ही नहीं सकता, सुख का कोई

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