Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 417
________________ मेरा मेरी तो साधें शापित हैं जब तुम छू दो तो पावन हो जब तुम वीणा के तार कसो यह गायक मन गंधर्व बने तुम ही यदि साथ रहो तो फिर हर पल जीवन का पर्व बने हर आह मधुरतम गायन हो हर आंसू फिर मधु का कण हो हाथ में हाथ परमात्मा के, वह तुम्हारे भीतर तैयार है। अपनी वीणा उसको सौंप दो। यही अष्टावक्र का समग्र संदेश है। साक्षी बन रहो, कर्ता नहीं, भोक्ता नहीं। और जो परमात्मा करना चाहता है, तुम निमित्तमात्र हो जाओ। होने दो, तुम हवा के झोंके हो जाओ, कि सूखे पत्ते, जहां ले जाए, चल पड़ो। जब तुम वीणा के तार कसो यह गायक मन गंधर्व बने तुम ही यदि साथ रहो तो फिर हर पल जीवन का पर्व बने हर आह मधुरतम गायन हो हर आंसू फिर मधु का कण हो मेरी तो साधें शापित हैं जब तुम छू दो तो पावन हो मेरा तो यज्ञ अधूरा है तुम साथ रहो तो पूजन हो मेरा तो लक्ष्य अदेखा है तुम साथ चलो तो दर्शन हो मेरा तो जीवन मरुथल है जब तुम आओ तो सावन हो यह हो सकता है। यह अभी हो सकता है । श्रवणमात्रेण । हरि ओम तत्सत्! आज इतना ही।

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