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और एक सपने में डूब जाओगे और तुम कहोगे अच्छा हुआ आगये, चलो मंदिर आ गये, पत्नी की बड़ी इच्छा थी, बात भी पूरी हो गयी। और तुम सोए भी रहे। ऐसा भी हो जाता है कि नींद में ही आदमी हाथ उठाकर अलार्म घड़ी बंद कर देता है और सुबह कहता है कि हुआ क्या मुझे उठना था, घड़ी बजी क्यों नहीं?
नींद में भी तुम्हारा निर्णय ही काम करता है। जिसे तुम अपना जीवन कह रहे हो, यह ज्ञानियों की दृष्टि से एक आध्यात्मिक निद्रा है। तुम जागना चाहो, तो कोई भी बहाना काफी है। एक सूखे पत्ते का गिरना वृक्ष से काफी है। उससे तुम्हें अपनी मौत की याद आ जाएगी। याद आ जाएगी कि एक दिन अपने को भी गिर जाना होगा। उतना जगाने के लिए काफी है। और अगर तुमने निर्णय किया है न जागने का, तो अष्टावक्र तुम्हारे द्वार पर दुदुंभी पीटते रहें, कुछ भी न होगा। तुम सुनोगे और अनसुना कर दोगे।
जिन मित्र ने पूछा है कि यह तो यात्रा का अंतिम दिन आ गया, कितने लोग यहां ज्ञान को उपलब्ध हुए? पहली तो बात दूसरे के संबंध में पूछना ही अज्ञान का सबूत है। फिर, कोई उपाय नहीं है कि दूसरा ज्ञान को उपलब्ध हुआ या नहीं, इसे तुम कैसे जानो ।
पूछनेवाले ने यह भी कहा है कि अगर हमें पता चल जाए कितने लोग उपलब्ध हुए तो इससे हमें भरोसा आएगा ।
अष्टावक्र ज्ञान को उपलब्ध हुए, इससे तुम्हें भरोसा नहीं आया, कृष्ण ज्ञान को उपलब्ध हुए इससे तुम्हें भरोसा नहीं आया, बुद्ध ज्ञान को उपलब्ध हुए इससे तुम्हें भरोसा नहीं आया, राम, कबीर, नाक, मुहम्मद फरीद, इनसे तुम्हें भरोसा नहीं आया और चूहड़मल - फूहड्मल ज्ञान को उपलब्ध हो जाएंगे तो तुम्हें भरोसा आ जाएगा ?
तुम कृष्ण से भी पूछते रहे बुद्ध से भी पूछते रहे कि कैसे हम मानें कि आपको हो गया है? और मैं यह भी नहीं कहता कि तुम्हारा पूछना अकारण है। असल में दूसरे का ज्ञान दिखेगा कैसे ? अंधे आदमी को कैसे समझ में आएगा कि दूसरे की आंख ठीक हो गयी है? मुझे कहो। अंधा आदमी कहेगा, जब तक मुझे दिखायी नहीं पड़ता, यह भी दिखायी कैसे पड़ेगा कि दूसरे की आंख ठीक हो गयी है? बहरे को कैसे पता चलेगा कि दूसरे को सुनायी पड़ने लगा है? यह तो सुनायी पड़े तो ही सुनायी पडेगा, दिखायी पड़े तो ही दिखायी पड़ेगा ।
यह तुम फिकर मत करो कि दूसरों को ज्ञान उपलब्ध हो जाएगा तो तुम्हें भरोसा आ जाएगा। भरोसा तो तुम्हें तभी आएगा जब तुम्हें उपलब्ध होगा। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, तुम भरोसे की प्रतीक्षा मत करो कि पहले भरोसा आएगा तब हम ज्ञान की तरफ जाएंगे। तब तो तुम कभी भी न जाओगे। क्योंकि ज्ञान में जो गया, उसे भरोसा आता है, अनुभव से भरोसा आता है, और तो कोई उपाय नहीं है। और जिसको तुम भरोसा कहते हो, वह धोखा है, थोथा है। विश्वास है, भरोसा नहीं । आस्था नहीं, श्रद्धा नहीं। मान लेते हो कि हुआ होगा! मान लेते हो कि कौन झंझट करे। मान लेते . हो कि कौन विवाद में पड़े। या कि मान लेते हो क्योंकि भीतर वासना है कि कभी हमको भी हो,