Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 414
________________ डायोजनीज बना दो। आश्चर्य, तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है, तुम इतने मस्त! डायोजनीज ने कहा इसीलिए कि कुछ नहीं है, इसीलिए मस्त। चिंता नहीं, फिकिर नहीं। एक चीज थी मेरे पास, तब तक थोड़ी चिंता थी। सिकंदर ने पूछा, वह क्या चीज थी? उसने कहा कि मैं सब तो छोड़ दिया था, कपड़े -लत्ते भी छोड़ दिये, नंगा हो गया था, लेकिन एक पात्र अपने हाथ में रखता था जल इत्यादि पीने को। फिर एक दिन मैं नदी पर गया पानी पीने को, मुझसे पीछे एक कुत्ता पहुंचा भागा हुआ और मुझसे पहले पानी पीकर चल पड़ा। मैंने कहा, हद्द हो गयी! मैं अपना वह पात्र ही घिसता रहा। पात्र सफाई करूं, फिर पानी भरूं, फिर पीऊं। मैंने कहा, भाड़ में जाए यह पात्र, यह कुत्ता मुझसे बड़ा संन्यासी है। मैंने वह पात्र भी छोड़ दिया और कुत्ते को गुरु बना लिया। अगर तुम उस कुत्ते से मिलना चाहो, डायोजनीज ने कहा, वह पास ही रहता है। दोनों साथ ही रहते थे। एक कचराघर जहां लोग कचरा फेंकते हैं, उसका टीन का पोंगरा जिसमें कचरा फेंकते हैं, उसको उठा लाया था वह, उस पोंगरे को नदी के किनारे रख लिया था, उसी में कुत्ता रहता, उसी में वह भी रहता। वह कहता, मेरा गुरु है। क्योंकि इसने ही मुझे सिखाया कि अरे, यह पात्र काहे के लिए ढो रहा हूं। सिकंदर से उसने कहा, एक चीज थी, उसकी वजह से मुझे चिंता होती थी, कभी-कभी रात में भी हाथ से टटोलकर देख लेता कि पात्र कोई ले तो नहीं गया। जब से वह गया, सब चिंता गयी। तब से तो मैं सम्राट हो गया हूं। तब से मस्त ही मस्त हूं! सिकंदर ने उससे कहा, मैं खश हआ मिलकरा मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकू? मुझे कहो तो मुझे खुशी होगी। उसने कहा, आप जरा हटकर खड़े हो जाएं, क्योंकि धूप रोक रहे हैं-सुबह का वक्त और वह धूप ले रहा था बस इतना, और तो आपसे क्या चाहिए! और आपके पास है क्या जो तुम मुझे दे सकते हो? और याद रखना, किसी की धूप रोककर खड़े मत होना। अगर इतना ही तुम कर सको तो काफी है। तुमसे खतरा है, तुम कई लोगों की धूप छीन लोगे| यह फौज-फाटा लेकर जा कहां रहे हो? किसकी धूप छीनने का इरादा है? मुझ गरीब की धूप, मैं मजा कर रहा था अपना यहां, नदी के किनारे रेत में लेटा था, सुबह की धूप ले रहा था तुम आकर खड़े हो गये। और मुझसे कह रहे, क्या चाहिए! सिकंदर ने कहा कि जा रहा हूं विश्व की विजय के लिए। लेकिन अंतिम लक्ष्य मेरा भी यही है जो तुम्हारा है-शात होना, विश्राम करना। डायोजनीज खूब खिलखिलाकर हंसने लगा। उसने कहा तो फिर इतनी यात्रा की क्या जरूरत है, मुझे देखते नहीं? शात हूं और विश्राम कर रहा हो तुम भी करो विश्राम, यह नदी का किनारा काफी बड़ा है, हम दोनों के लिए काफी है। और भी कोई लोग आएं, उनके लिए भी काफी है। यहां कुछ अड़चन नहीं है। सिकंदर ने कहा, अभी न कर सकूँगा। तो डायोजन ने कहा, फिर कभी न कर सकोगे, जो अभी कर सकता है वही कर सकता है। ___इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि जो हो सकता है अभी हो सकता है-श्रवणमात्रेण-कल पर छोड़ा, छूटा। न करना हो मत करो, मगर यह तो मत कहो कि कल करेंगे। न करना हो तो यही कहो कि नहीं करना है। नहीं करना है, नहीं करने की इच्छा है, तो कम से कम ईमानदारी तो होगी। यह बेईमानी

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