Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 413
________________ संबंध ही नहीं है बाहर के जगत से, सुख मिलता है उन्हें जो भीतर जाते हैं, सुख मिलता है उन्हें जो स्वयं में आते हैं, सुख मिलता है उन्हें जो साक्षी हो जाते है तो उसी क्षण घटना घट जाएगी। तुम पूछते हो, जागरण क्यों नहीं आता? क्योंकि तुमने दुख के वाण को ठीक से छिदने नहीं दिया। तुमने बहुत तरकीबें बना ली हैं दुख के वाण को झेलने के लिए कोई आदमी दुखी होता है, वह कहता है, पिछले जन्मों के कर्मों के कारण दुखी हो रहा हूं -खूब तरकीब निकाल ली सांत्वना की। पिछले जन्मों के कारण दुखी हो रहा हूं। अब कुछ किया नहीं जा सकता, बात खतम हो गयी, अब तो होना ही पड़ेगा। तुमने एक तरकीब निकाल ली। कोई आदमी कहता है, इसलिए दुखी हो रहा हूं कि अभी मेरे पास धन नहीं है, जब होगा तब सुखी हो जाऊंगा। कोई कहता है, अभी इसलिए सुखी नहीं हूं कि सुंदर पत्नी नहीं है होगी तो हो जाऊंगा। कि बेटा नहीं है, होगा तो सुखी हो जाऊंगा। तुम देखते नहीं कि हजारों लोगों के पास बेटे हैं और वे सुखी नहीं हैं! तुम कैसे भ्रम पालते हो? हजारों लोगं के पास धन है और वे सुखी नहीं और तुम कहते हो, मेरे पास होगा तो मैं हो जाऊंगा। हजारों लोग पद पर हैं और सुखी नहीं, फिर भी तुम देखते नहीं। तुम कहते हो, मैं होऊंगा तो सुखी हो जाऊंगा, हमें हजारों से क्या लेना-देना! मेरा तो होना पक्का है। मैं अपवाद हूं, ऐसी तुम्हारी भ्रांति है। नहीं कोई अपवाद है। जीवन में बाहर से सुख मिला नहीं किसी को, दुख ही मिला है। बाहर जो भी मिलता है दुख है। बाहर से जो मिलता है, उसी का नाम दुख है। और भीतर से जो बहता है, उसी का नाम सुख है। इसलिए जाग नहीं हो रही। तुम दुखों को समझाए जाते हो और तुम सुख की आशा बांधे चले जाते हो। तुम कहते हो, होगा। कभी न कभी होगा। किसी न किसी तरह उपाय कर लेंगे। छीना-झपटी, चोरी करनी पड़ेगी चोरी कर लेंगे, लेकिन कर लेंगे, होगा। तुम रेत से तेल निचोड़ने की चेष्टा में लगे हो। तुम यह देख ही नहीं रहे कि आज तक संसार में कोई भी रेत से तेल नहीं निचोड़ पाया है। आज तक संसार में कोई भी बाहर से सुखी नहीं हो पाया-सिकंदर हों, कि नेपोलियन हो, कि बड़े धनपति हों, सब खाली हाथ आते और खाली हाथ जाते। हां, कुछ लोग जीवन में महाआनंद को उपलब्ध हुए हैं-कोई अष्टावक्र, कोई बुद्ध, कोई कृष्ण, कोई क्राइस्ट, कोई मुहम्मद। कुछ थोड़े -से इने -गिने लोग, जरा उनकी तरफ देखो। उन सबका एक ही कारण है सुख का कि वे सब भीतर की तरफ मुड़ गये। सुख चाहते हो? कुछ बुरी बात नहीं चाहते। गलत दिशा में चाह रहे हो, इसीलिए भटक रहे हो। दुख मिल रहा है? नियम से मिल रहा है। दीवाल से निकलना चाहोगे, सिर टकराएगा, खोपड़ी फूटेगी, दुख मिलेगा। दरवाजे से निकलो। और दरवाजा भीतर की तरफ है, दीवाल बाहर की तरफ। मैंने सुना है, यूनान में एक बहुत अदभुतसंन्यासी हुआ डायोजनीजा वह नंगा ही रहता था, और बड़ा मस्त आदमी था। सिकंदर को भी उससे ईर्ष्या हो गयी थी। सिकंदर उससे मिलने भी गया था। और जब उसने डायोजनीज को देखा था तो उसका दिल धड़ककर रह गया था। उसने डायौजनीज से कहा था, अगर दुबारा मुझे जन्म लेना पड़ा तो परमात्मा से कहूंगा अब की बार सिकंदर मत बनाओ,

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