Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 403
________________ प्रीति का आधार है, होश। बिना होश के प्रीति हो तो भटकाकी । बंधन बन जाएगी। होश के साथ प्रीति हो तो मुक्ति बन जाएगी। पहुंचाएगी। लेकिन साधारणत: तुम पाओगे, जब होश साध तो प्रीति टूटी, प्रीति साधोगे तो होश टूटा। तो न तो तुम्हारा होश सच्चा है, न तुम्हारी प्रीति सच्ची प्रीति सच्ची हो, तो होश के विपरीत नहीं होती। प्रीति सच्ची हो तो होश को बढ़ाती है। होश सच्चा हो तो प्रीति से कैसे टूट सकता है? मजबूत होता है, सघन होता है। लेकिन हम बड़े कच्चे घड़े हैं। जरा-सी वर्षा होती है, मिट्टी बह जाती है। होश की वर्षा हो गयी, प्रीति का घड़ा टूट गया। प्रीति की वर्षा हो गयी, होश का घड़ा टूट गया। हम बड़े कच्चे हैं। इस कच्चेपन का आधार एक ही बात है - सोया - सोयापन कर तो रहे हैं बहुत कुछ लेकिन पक्का कुछ साफ नहीं क्यों कर तो रहे हैं, यह भी पक्का पता नहीं कि भीतर कौन करने वाला, करने के पीछे कौन बैठा है? कर तो बहुत रहे हैं, हो तो रहा बहुत व्यवसाय, जीवन में जाल चल रहा है, लेकिन कभी क्षणभर रुक कर भी नहीं सोचा, क्यों? किसलिए? अभी अपने से कोई पहचान नहीं हुई। अपने से पहचान हो जाए तो तुम पाओगे कि प्रेम और साक्षी, ध्यान और प्रेम, भक्ति और ज्ञान एक ही ऊर्जा के दो पहलू हैं। एक-साथ दोनों आते हैं। अगर तुम प्रेम को साधो, तो यह समझना कि प्रेम अगर पक्का और असली हो तो साक्षी अपने-आप आएगा। आना ही पड़ेगा। अगर तुम साक्षी को साधो और तुम्हारा होश असली हो तो प्रेम आएगा। आना ही पडेगा । तो इसे ऐसा समझो - साक्षी की साधना करते समय अगर प्रेम न आता हो तो समझना कि कहीं भूल हो रही है साक्षी की साधना में। नहीं तो प्रेम आना ही चाहिए, वह परिणाम है। यह भी क्या हुआ, फसल तो बोयी और फल आए ही नहीं! फल तो आने ही चाहिए। और अगर तुम प्रेम करो और साक्षी न आए, तो समझ लेना कि कहीं फिर चूक हो रही है। इन दोनों को ख्याल में रखना । और दोनों का अगर धीरे - धीरे संयम संतुलित हो जाए तो तुम्हारे जीवन में वह अपूर्व घटना घटेगी जिसको मोक्ष कहो, निर्वाण कहो, तुरीय कहो, या जो भी नाम तुम्हें प्रीतिकर लगता हो वही दे दो। तीसरा प्रश्न : संन्यास जब से लिया है, भीतर शांति है पर बाहर बड़ी उथल-पुथल मच गयी है। मैं तो चैन में हूं? पर दूसरे बडे बेचैन हो रहे हैं। मैं क्या करूं? ऐसा स्वाभाविक है। जब एक व्यक्ति संन्यास लेता है, तो उससे जुड़े हुए जो सैकड़ों व्यक्ति थे, उनके जीवन में उथल-पुथल मचेगी। तुम्हारे संन्यास का अर्थ यह हुआ कि तुम बदले। तो उन सब ने तुमसे अब तक जो संबंध बनाए थे, वह सभी संबंध उन्हें बदलने पड़ेंगे। और कोई झंझट नहीं

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