________________
जाए कि मौत जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाए तुम्हारी तरफ चली आ रही है। तुम कह रहे हो कि मुझे रास्ता बता दें कि मौत से बचने का कोई उपाय । तुम सोचते हो, मैं कोई तुम्हें ताबीज - गडा दे दूं कि तुम बच जाओ मौत से ।
जब तक कुछ अपनी कहूं सुनूं जग के मन की तब तक ले डोली द्वार विदा - क्षण आ पहुंचा
फूटे भी तो थे बोल न स्वांस क्वांरी के
गीतों वाला इकतारा गिरकर टूट गया हो भी न सका था परिचय दृग का दर्पण से
काजल आंसू बनकर छलका और छूट गया इतनी जल्दी सब हो जाएगा। ज्यादा देर नहीं लगेगी। जब तक कुछ अपनी कहूं सुनूं जग के मन की तब तक ले डोली द्वार विदा - क्षण आ पहुंचा
कह भी न पाओगे अपने मन की सुन भी न पाओगे अपने मन की और पाओगे कि आ गयी डोली । अर्थी उठने लगी, बंधने लगी ।
फूटे भी तो थे बोल न स्वांस क्वांरी के
गीतों वाला इकतारा गिरकर टूट गया
इकतारा बज भी कहां पाता और टूट जाता है। कहां कौन कह पाता है जो कहना था ! कहां कौन हो पाता है जो होना था !
हो भी न सका था परिचय दृग का दर्पण से
आंख अभी दर्पण से मिल भी न पायी थी
काजल आंसू बनकर छलका और छूट गया
मौत तो जल्दी बढ़ी आती है। और किसी भी क्षण द्वार पर दस्तक दे देगी। क्षण भर पहले भी खबर न देगी कि आती हूं। मौत तो अतिथि है। तारीख, तिथि बता कर न आएगी, बस आ जाएगी। एक क्षण फुरसत न देगी। तुम कहोगे, साज-सामान बांध लूं र मित्र - प्रियजनों से क्षमा मांग लूं र मिल लूं जुल लूं इतना मौका भी न देगी। जल्दी करो, इसके पहले कि मौत आ जाए, तुम अपने भीतर के अमृत को पहचान लो ।
तो मैं तो चाहता हूं कि तुम्हें मौत के प्रति और सजग करूं मैं तो चाहता हूं कि तुम्हें और कंपा दूं-तुम्हारी जड़ें हिल जाएं- तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें नींद में सुला दूं? कोई रास्ता बता दूं? कोई तरकीब दे दूं कि जिससे मौत से बचाव हो जाए। मौत से बचकर करोगे भी क्या ? अभी कर क्या रहे हो जिंदा रहकर, यही करोगे न बचकर ! इसको कितने दिन तक करते रहने का मन है? सत्तर साल से मन नहीं चुकता? सात सौ साल करोगे, यही? हद हो गयी बात!