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जैसे कोई शोरगुल से आशा कर रहा है शांति की। ऐसे कोई शव से बातें कर रहा है जीवन की। नीरव की अर्चा रव से
जीवन की चर्चा शव से
इस मुर्दे को तुम जीवित समझे हो इसीलिए अड़चन हो रही है। मुर्दा तो मुर्दा है। अभी भी मरा हुआ है। रोज मर रहा है। तुम्हें खयाल नहीं है, क्योंकि तुम खयाल देना नहीं चाहते, तुम डरते हो। ये तुम्हारे सिर में बाल ऊगते, दाढ़ी में बाल ऊगते, यह कभी तुमने खयाल किया, इनको तुम काटते हो, दर्द नहीं होता। यह तुम्हारे शरीर का मुर्दा हिस्सा है जो शरीर बाहर फेंक रहा है। नाखून काटते हो, दर्द नहीं होता। यह जिंदा हिस्सा नहीं है। मल-मूत्र रोज बाहर जा रहा है, यह सब मरा हुआ हिस्सा है। शरीर में से रोज मर रहा है कुछ, तुम रोज भोजन लेकर नया जीवन थोड़ा सा डालते हो। थोड़ी देर जीवन सरकता है। फिर रोज मुर्दा कुछ हिस्सा निकल जाता है।
वैज्ञानिक कहते हैं, सात साल में आदमी का पूरा शरीर मर जाता है, फिर दूसरा शरीर। सत्तर साल की उम्र में दस बार शरीर मर जाता है। पूरा-का-पूरा बदल जाता है, एक-एक कण बदल जाता है। कुछ नहीं बचता पुराना, सब नया होता रहता है।
शरीर तो रोज मर रहा है। शरीर की तो प्रक्रिया मृत्यु है। इस शरीर के पार एक चैतन्य की दशा है, मगर उसका तुम्हें कुछ पता नहीं। तुम वही हो और तुम्हें उसका पता नहीं। तुम्हें आत्मस्मरण नहीं। यह मत पूछो कि मौत के लिए हम क्या करें? इतना ही पूछो कि हमारे भीतर शरीर के पार जो है, उसे जानने के लिए क्या करें? मृत्यु से बचने की मत पूछो, ध्यान में जागने की पूछो। अगर तुम्हें इतना पता चल जाए कि मैं भीतर चैतन्य हूं तो फिर शरीर ठीक है, तुम्हारा आवास है। घर को अपना होना मत समझ लो। और जैसे ही तुम्हें यह बात समझ में आनी शुरू हो जाएगी, तुम्हारे भीतर अपूर्व क्रांति घटित होगी।
नर! बन नारायण स्वर! बन रामायण
और तब तुम अचानक पाओगे, तुम्हारे भीतर जो तुमने नर की तरह जाना था, वह नारायण है। और जो तुमने स्वर की तरह जाना था, वह रामायण है।
शरीर तो मिट्टी है। मिट्टी से बना है, मिट्टी में विदा हो जाएगा। मिट्टी नीरव मिट्टी कलरव मिट्टी कट भव मिट्टी चिर नव
मिट्टी से बनता है, मिट्टी में गिरता है, फिर उठता है, फिर गिरता है। यह सब सृजन मिट्टी का है। यह सब खेल मिट्टी का है। तुम इस मिट्टी के दीये को अपना होना मत समझ लो। इस मिट्टी के दीये में जो तेल भरा है, वह तुम्हारा मन है। उसे भी तुम अपना होना मत समझ लो। उस तेल