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हूं रास्ते पर-सर्वत्यागी-तुमने क्या छोड़ा!
यह हमारी सब विशिष्टता की दौड़े हैं। और विशिष्टता की दौड़ का एक ही अर्थ है कि हमें अभी अपना कुछ भी पता नहीं चला। अभी हम विशेषण तलाश रहे हैं। अभी हम चेष्टा कर रहे हैं दनिया को दिखाने की कि हम कौन हैं। जिसने स्वयं को जान लिया. उसकी सब चेष्टा समाप्त हो जाती है कि मैं कौन हूं। जिसने स्वयं को जान लिया, उसने तो जान लिया कि सारा अस्तित्व ही विशिष्ट है, यहां विशिष्ट होने की दौड़ पागलपन है। यहां सभी कुछ असामान्य है, क्योंकि सभी कुछ प्रभु से परिपूरित है।
जनक कहते हैं, 'और कहां वह विदेह कैवल्य ही?'
जनक के संबंध में एक विशेषण उपयोग किया जाता है कि वह विदेह कैवल्य को उपलब्ध हो गये थे। कहते हैं न, राजा जनक विदेह थे। विदेह का मतलब कि देह में रहते -रहते देह के जो पार था उसे उन्होंने जान लिया था। विदेह का अर्थ, संसार में रहते -रहते वे मोक्ष को उपलब्ध हो गये थे। लेकिन जनक कहते हैं ' 'और कहां वह विदेह कैवल्य ही!'
जिसकी लोग चर्चा करते हैं कि जनक को मिल गया, विदेह कैवल्य, वह भी कहां है! अब कुछ भी नहीं है। महाशून्य है। शून्य भी जब न रह जाए तो उसका नाम है महाशून्य।
'सदा स्वभावरहित मुझको कहां कर्तापन है और कहां भोक्तापन है? अथवा कहां निष्कियता है और कहां स्फुरण है? अथवा कहां प्रत्यक्ष ज्ञान है और कहां उसका फल है?'
क्व कर्ता क्व च वा भोक्ता निष्कियं स्फूरणं क्व वा। क्वापरोक्षं फलं वा क्व निस्वभावस्य मे सदा।। समझें। 'सदा स्वभावरहित मुझको कहां कर्तापन है?' क्व निस्वभावस्य मे सदा।
फिर विरोधाभास है। स्वभाव और उसमें और एक निषेध लगा दिया-निःस्वभाव। जब तुम स्वयं को जानोगे तो एक अनूठी बात जानोगे कि वहाँ स्व जैसा कुछ भी नहीं है। स्वयं को जानकर पाओगे कि स्व तो गया। वह स्व भी पर के साथ ही जुड़ा था। जब तुम बिलकुल अकेले रह जाओगे तो अकेले भी न रहोगे, क्योंकि अकेलापन भी भीड़ की तुलना में था।
समझो। जब तुम बाजार में हो, भीड़ में हो। फिर तुम चले हिमालय के एक शिखर पर बैठ गये। तुम कहते हो, बड़ा आनंद, अकेले बैठे, कोई भीड़-भाड़ नहीं। लेकिन तुम्हारे अकेलेपन की परिभाषा भीड़-भाड़ से आती है।
मैं कुछ मित्रों को लेकर कश्मीर में था। जिस बजरे पर हम रुके थे। उस बजरे का जो मालिक था, वह धीरे - धीरे मेरे प्रेम में पड़ गया। जब हम आने लगे, वह रोने लगा। तो मैंने उससे पूछा कि बात क्या है? तो उसने कहा, बाबा, बस एक दफे बंबई दिखला दो। तू बंबई देखकर क्या करेगा, यह बंबई के सब लोग मेरे साथ यहां हैं। ये बंबई से छूटना चाहते हैं। उसने कहा कि नहीं बाबा, हो