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सरलतम घटना: परमात्मा-प्रवचन-पंद्रहवां
दिनांक 9 फरवरी, 1977, ओशो आश्रम, पूना।
पहला प्रश्न :
महागीता की इस अंतिम प्रश्नोत्तरी में कृपा करके श्रवणमात्र से होने वाली तत्काल-संबोधि, सड़न एनलाइटेनमेंट का राज फिर से कह दें। इस महाघटना के लिए पूर्वभूमिका के रूप में क्या तैयारी जरूरी है? क्या बिना किसी भी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तैयारी के तत्काल-संबोधि घटना संभव
फिर से पूछते हो। एक ही बात रोज कही जा रही है। एक ही बात को अनंत बार दोहराया जा रहा है। फिर पूछने से न सुन पाओगे| इतने बार दोहराकर समझ में नहीं आता। एक ही बार कहे जाने से समझ में आ सकती है। बात इतनी सरल है। इसलिए प्रश्न बात के दोहराने का नहीं है, प्रश्न तुम्हारी मूर्छा का है। तुम इतने सोए हो, कितनी ही बार दोहराओ, कोई अंतर न पड़ेगा। शायद बहुत बार दोहराने से तुम समझो कि कोई लोरी गा रहा है और तुम और गहरी नींद में सो जाओ। अनेक बार दोहराने का परिणाम जागरण नहीं होता।
फिर पूछते हो कि श्रवणमात्र से होने वाली तत्काल संबोधि का राज क्या है?
राज होता तो श्रवणमात्र से कभी संबोधि उपलब्ध नहीं हो सकती थी। अगर कोई राज होता, कोई सीक्रेट होता, अगर कोई बात छुपी होती, तो खोजनी पड़ती। चेष्टा करनी पड़ती। श्रवणमात्र से जो संबोधि घटित होती है, उसका अर्थ ही इतना है कि राज कुछ भी नहीं है। परमात्मा प्रगट है, छिपा नहीं। परमात्मा मौजूद है, पर्यों में नहीं। परमात्मा आंख के सामने खड़ा है, परमात्मा आंख के पीछे खड़ा है। परमात्मा ने ही तुम्हें सब ओर से घेरा है। परमात्मा के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं। राज कहां है? जिन्होंने समझा कि परमात्मा राज है, वे चूके। फिर वे परमात्मा को खोजने में लगेंगे। और जो इतना मौजूद है कि उसके अतिरिक्त कुछ मौजूद नहीं उसे तुमने खोजा कि चूके। खोजने में ही चूक हो गयी। जैसे कि भर दोपहरी में कोई रोशनी खोजने लगे, तो तुम क्या कहोगे, इसको मिलेगी रोशनी? चारों तरफ धूप बरस रही है, यह धूप में ही खड़ा है और कहता है, मैं रोशनी को खोजना चाहता हूं। रोशनी कहां है, इस बात का राज क्या है? इसके पूछने में ही भ्रांति है। इसके पूछने में ही चूक हुई जा रही है।