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की खुशी छीन लो।
नहीं, यहां मुझे कोई भी प्रयोजन नहीं। मैं अपूर्व आनंदित हुआ हूं,उस आनंद से जो झर रहा है, तुम अपनी झोली में भर लो, तुम्हारी मौज, न भरी, तुम्हारी मौज| बदल जाओ, तुम्हारी मौज न बदलो, तुम्हारी मौज। ये सब तुम्हारे निर्णय हैं, इनसे मेरा कुछ लेना-देना नहीं है।
आखिरी प्रश्न :
कब होगा छुटकारा भवबंधन से? और कब तक प्रतीक्षा?
तुम्हारी जल्दी ही अड़चन डाल रही है। तुम जितनी जल्दी करोगे, उतनी ही देर लग जाएगी। भवबंधन से छुटकारा तो तुम चाहते हो लेकिन अभी भवबंधन को समझा भी नहीं, अन्यथा छुटकारा हो जाता। कोई तुम्हें बांधे थोड़े ही है, तुम बंधे हो।
यह बड़े मजे की बात है। एक आदमी खंभे को पकड़े खडा है और वह कहता है, हे प्रभु, इस खंभे से कब छुटकारा? और कब तक प्रतीक्षा? किससे कह रहे हो? कोई तुम्हें बांधे हुए नहीं है खंभे को तुम पकड़े खड़े हो। खंभे ने तुम्हें बांधा नहीं है, खंभे को तुम में जरा भी रस नहीं। इसी खंभे में तुम्हारे जैसे और मूढ़ भी पहले पकड़े खड़े रहे हैं इसी खंभे को। और तुम्हारे चले जाने के बाद दूसरे इसी खंभे को पकड़े रहेंगे।
__ तुम तिजोड़ी को पकड़े हो, तुमसे पहले यह किसी और की तिजोड़ी थी। तुमने धन पकड़ा है, तुमसे पहले कोई और पकड़े था। जो नोट तुम्हारे हाथ में है, वह हजारों हाथों में आया है और हजारों हाथों में चलकर आया है। इसलिए तो अंग्रेजी में ठीक शब्द उसका नाम है, करेंसी। करेंसी का मतलब जो चलता रहता। करेंट। इधर से उधर, इधर से उधर। रुकता ही नहीं। एक हाथ से दूसरे, दूसरे हाथ से तीसरे हाथ में जाता रहता। हजार हाथों की छाप है उस पर। करेंसी नोट से गंदी चीज तुम दुनिया में कोई खोज ही नहीं सकते। मगर तुम भी उसको पकड़े हो। और जोर से पकड़े हो। और दूसरे जिनके हाथ में था वे भी जोर से पकड़े थे। और सबको खयाल यह है कि धन तुम्हें पकड़े हुए है। हे प्रभु, भवबंधन से कैसे छुटकारा होगा? कब छुटकारा होगा? तुम भवबंधन को जिस दिन समझ लोगे उसी क्षण छुटकारा हो गया। जिस क्षण समझ लिया कि खंभे को मैं पकडे हूं,अब पकड़ना हो तो पकड़ो, न पकड़ना हो तो न पकड़ो, बात खतम हो गयी।
दुनिया के इस मोह जलधि में किसके लिए उठू उभरूं अब?