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भावना ही तो विचार है। तुमने सोचा कि एक बड़ा मकान बनाएं। अभी यह विचार है, लेकिन यह विचार के पीछे अगर तुम पड़ जाओ, तो बड़ा मकान बनेगा। तुमने अभी सोचा कि इस आदमी को मार डालें, यह अभी विचार है, लेकिन अगर यह बार-बार पुनरुक्त होता रहे और तुम्हारे भीतर जड़ीभूत होता जाए, तो एक न एक दिन इसमें अंकुर निकलेंगे। तुम इस आदमी को मार डालोगे।
दॉस्तॉवस्की की प्रसिद्ध कहानी है. क्राइम एंड पनिशमेंट। उसमें एक युवक है, जो एक की औरत के घर के सामने रहता है। वह की औरत बहुत की है| और गांव की सबसे बड़ी धनी है। और गांव में सारे लोगों को चूस रखा है। गिरवी रखने का काम करती है। उसे दिखायी भी नहीं पड़ता, अस्सी साल की हो गयी है। वह युवक सामने ही रहता है, वह कई दफे ऐसे ही बैठे-बैठे सोचता है कि यह की मर क्यों नहीं जाती है! इसके होने से जरूरत भी क्या है! अब इसके होने से सार भी क्या है! न इसके कोई आगे, न कोई पीछे। यह क्यों गांव भर की जान लिये ले रही है! और गांव भर उससे परेशान है। इसलिए यह विचार बिलकुल स्वाभाविक है। कई दफे उसके मन में विचार उठता है, कि विद्यार्थी भूखे मर रहे हैं, फीस चुकाने के पैसे नहीं हैं और यह की धन इकट्ठा करती जा रही है, किसके लिए? यह सारा गांव संपन्न हो सकता है अगर यह मर जाए। इसको कोई मार क्यों नहीं डालता! यह सब विचार हैं।
फिर परीक्षा के दिन करीब आते हैं और उसको फीस भरनी है और पैसे उसके पास नहीं हैं, तो उसे अपनी घड़ी रखने गिरवी इस की के पास जाना पड़ता है। ऐसा वह कोई दो साल से बार-बार सोचता था कि इसको कोई मार क्यों नहीं डालता! कभी ऐसा नहीं था कि उसने सोचा था कि मैं मार डालूं। ऐसा कभी नहीं सोचा था। लेकिन दो साल का अनवरत क्रम-रसरी आवत जात है सिल पर पड़त निज्ञान-वह सोचता ही रहा, सोचता ही रहा। यह विचार मजबूत होता चला गया। वह गया, इस की को-सांझ का समय है-उसने घड़ी जाकर दी। तो वह बूढ़ी बहुत की है बड़ी मुश्किल से खड़ी हो सकी, खिड़की के पास जाकर-आंखें कमजोर हैं-रोशनी में वह घडी देखने लगी कि है भी रखने योग्य कि नहीं? और तभी न मालूम क्या हुआ इस युवक को रोसकोलिनि को, उसका नाम है-उसने अचानक झपटकर पीछे से उसकी गर्दन दबा दी। जब उसने गर्दन दबायी तब उसे समझ में खुद भी नहीं आया कि मैं यह क्या कर रहा हूं, बस यह हो गया। और वह औरत तो मरी ही थी ही काफी की थी-उसके दबाते ही मर गयी, उसने एक चीख भी न निकाली। अब वह घबड़ाया। वह गिर पड़ी। वह इतना घबड़ा गया, यह उसने कभी चाहा नहीं था। वह मारना चाहता भी नहीं था। पर विचार अगर बहुत दिन पीछे पड़ा रहे, तो धीरे- धीरे तुम्हारी देह में प्रविष्ट हो जाता है। यह विचार ने यांत्रिक रूप से स्त्री को मार डाला।
पर चीख भी नहीं निकली, वह चुपचाप उतरकर अपने कमरे में चला गया, अपने घर। किसी को पता भी नहीं चला रात भर, सुबह पता चला लोगों को कि बुढ़िया मर गयी। तब पुलिस ने खोजबीन करनी शुरू की। कोई उपाय भी नहीं था, कोई सोच भी नहीं सकता था इस युवक को कि यह मारेगा। यह तो एक सीधा-सादा विदयार्थी था, इस पर तो कोई सवाल भी नहीं था। मगर यह घबड़ाने लगा।