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दीये दो होंगे लेकिन उनकी रोशनी तो बिलकुल एक हो जाती है। बिलकुल एक हो जाती है।
मैंने सुना है, एक सम्राट के तीन बेटे थे और वह चाहता था कि अपने किसी बेटे को चुन ले जो उसके राज्य का मालिक हो। सम्राट का हो गया था। तो उसने फकीर से सलाह ली। फकीर ने कहा, इनको हजार-हजार रुपये दे दो.. ..तीनों बेटों के तीन महल थे....उसने कहा, यह हजार-हजार रुपये लो और इस तरह से कुछ चीज खरीदो कि तुम्हारा पूरा महल भर जाए मगर हजार रुपये से ज्यादा खर्च नहीं करना। इससे तुम्हारी कुशलता का पता चलेगा 1 जो जीत जाएगा, वही इस राज्य का मालिक होगा।
पहले बेटे ने बहुत सोचा कि हजार रुपये में इतना बड़ा महल सिवाय कूड़ा-करकट के और तो कुछ मिल ही नहीं सकता। हजार रुपया तो ढोने में ही लग जाएगा कूड़ा-करकट जब पूरा महल भरना है। तो वह तो गया, तो उसने जाकर जहां म्मुनिसिपलटी कचरा फेंकती होगी गांव भर का, वहां से सब बैलगाड़ियों में भरवा- भरवा कर महल में पूरा कचरा भर दिया। क्योंकि इससे और तो सस्ती कोई चीज हो नहीं सकती थी-मुफ्त था-सिर्फ ढोने का खर्च था। ढोने में ही हजार रुपये खर्च हो गये। महल भर दिया उसने। भयंकर बदबू उठने लगी। राह से लोगों ने चलना बंद कर दिया। उसके महल के आसपास लोग न जाते। वह भी अपने बाप से प्रार्थना करने लगा कि अब जल्दी ही वह परीक्षा हो जाए, क्योंकि मैं भी मरा जा रहा हूं। तुमने कहां का उपद्रव करवा दिया है!
दूसरे बेटे न बहुत सोचा। उसने कहा कि कूड़ा-करकट से घर को भरना तो अपात्रता का लक्षण होगा। तो क्या करना? कैसे घर को भरें। घर तो भरना चाहिए फूलों से, कूड़े से तो नहीं। तो उसने फूल खरीदे। लेकिन हजार में कितने खरीद सकता था! महल बड़ा था। भरने की तो बात दूर रही, ऐसे छिटका दिये सारे महल में फूल।
तीसरे बेटे ने कुछ भी उपाय न किया। जिस दिन बाप आया तब तक उसने कुछ भी न किया था। और गांव भर में चिंता फैलने लगी कि यह तीसरा बेटा हार जाएगा, कुछ कर क्यों नहीं रहा है? बैठा क्यों है? तीसरे दिन उसने तो दीये जलाए, घी के दीये जलाए सारे महल में।
बाप फकीर को लेकर आया। फकीर ने पहले बेटे को कहा कि इसने बात तो पूरी कर दी, घर तो भर दिया, लेकिन जिस चीज से भर दिया उससे सिर्फ अयोग्यता सिद्ध होती है। इसने गणित तो पूरा कर दिया, लेकिन समझ इसके पास नहीं है। तर्क तो इसने पूरा कर दिया कि घर भर दिया, लेकिन जिस चीज से भरा है इसका इसने कोई विचार न किया। इस व्यक्ति के जीवन में गणित तो है, गुण नहीं है। तर्क तो है, बोध नहीं है। यंत्रवत है इसकी बुद्धि। इसको राज्य देना ठीक नहीं।
वे दूसरे व्यक्ति के पास पहुंचे। उसने महल में फूल रखे थे, लेकिन फूल सब मुरझा गये थे। कई दिन हो गये थे, सड़ने लगे थे। उनसे दुर्गंध उठने लगी थी। और महल भरा भी नहीं था। तो फकीर ने कहा, यह पहले से बेहतर है, इसके पास थोड़ी गुण-बुद्धि है। फूल लाया, लेकिन इसके पास दूरदृष्टि नहीं है कि ये फूल सड़ जाएंगे। फूल तो तभी सुंदर जब ताजे। सच तो यह, फूल तो वृक्ष पर ही सुंदर होते हैं, तोड़े कि मरे, कि उनका सड़ना शुरू हुआ। इसने सोच-विचार तो थोडा किया, लेकिन गणित